कलाई के जादूगर लक्ष्मण का एक स्ट्रोक तो मै कभी नहीं भूल सकता - जेसन गिलस्पी की एक गेंद जो “ऑफ
स्टंप” पर लगभग वाइड थी उसे उन्होंने “लेग स्टंप” पर 4 रनों
के लिए भेज दिया – बिना किसी मुश्किल के – बेहद आराम से।
एक
कलाकार के लिए दो गुण होना सबसे ज्यादा ज़रूरी है । पहली नैसर्गिक कला और दूसरी उस पर मेहनत, पर लाज़मी तौर पर सबके पास सब कुछ नहीं होता । कुछ उसे ऊपर से
लेकर आते है, कुछ उसे और
निखारते है । जब
मेहनती राहुल द्रविड़ ने अपने ग्लव्स टाँगे तो मशहूर फैब 4 में
से दूसरा विकट गिरा पर अफ़सोस कि हर बार की तरह इस बार नैसर्गिक कला के माहिर लक्ष्मण बचाने नहीं आये बल्कि उन्होंने भी पवेलियन का रुख कर
लिया । वीवीएस की बैटिंग कुछ अलग थी । वो सहवाग कि तरह कसाई नहीं है, वो द्रविड़ की तरह पसीना बहाते नहीं दीखते और न ही तेंदुलकर कि तरह अमूर्त
भगवान् । उनकी कला में नफासत है, नजाकत है
एक हुनरमंद चित्रकार की तरह । वो ताक़त नहीं दिखाते, ना ही उनके शोट्स
ऐसे होते है जैसे गेंदबाज़ से उनकी कोई जाती दुश्मनी हो । वो तो बस गेंद को ऐसे
बाउंड्री पर भेज देते है जैसे कोई पेंटर ब्रश फेरता है ।
उनकी बल्लेबाज़ी पाक है,
मासूम मोहब्बत की तरह एक मखमली एहसास से भरी ।
पर
उनकी विदाई अलग रही, अचानक और अवाक। ताज्जुब इस बात का कि लक्ष्मण ने अपने घरेलू दर्शकों के सामने विदाई टेस्ट मैच खेलने
का अवसर भी ठुकरा दिया। समझ में नहीं
आया कि लक्ष्मण के अचानक संन्यास लेने के पीछे का राज क्या है ? मृदुभाषी, शांत और सयंत लक्ष्मण ने अपनी तरफ से ऐसा
कोई संकेत नहीं दिया कि आखिर उन्होंने संन्यास क्यों लिया ? उन्होंने
सिर्फ इतना कहा कि उन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी और तय किया कि यह संन्यास लेने का सही समय यही है। बेशक उन्हें जाना था और वो गए भी, मगर इस तरह जाने पर
सवाल उठ रहे है। आखिर उनके जैसे क्रिकेटर पूरी पीढ़ी में बस एक बार ही आते हैं। वो उन चंद बल्लेबाज़ों में
से थे जिन्हें बड़ा लक्ष्य डराता नहीं है, मज़बूत टीमो के खिलाफ उम्दा
प्रदर्शन उनकी लत थी और जब टीम मुश्किल में हो तो वो हमेशा चट्टान बने खड़े मिलते
थे । वो कितने बेमिसाल रहे है इसे बताता है दूसरी पारी में उनका बेहतर
प्रदर्शन । जब विकेट टूट रहा हो, विपक्षी हावी हो, तब पुछ्छाले बल्लेबाजों के साथ मैच जिताने या बचाने में तो जैसे उन्हें
महारत हासिल थी । उन्होंने अपनी हर पारी में, अपने हर स्ट्रोक
में क्रिकेट के शौकीनों को चमत्कृत किया और ऐसी कई क्लासिकल पारियाँ खेलीं जो
उन्हें बेजोड़ बनाती है । दूसरी पारी के इस महान बल्लेबाज़ के लिए तो मज़ाक में ही सही मगर कहा
ये भी जा रहा है कि अपनी 2ND Inning में बार बार हारती
UPA सरकार को उनकी सेवाए लेनी चाहिये क्यूंकि अब लक्ष्मण ही उन्हें बचा
सकते है ।
दरअसल क्रिकेट में इंडिया शाइनिंग की असल बुनियाद उन्होंने ही रखी
थी । याद कीजिये 2001 में कोलकाता के
ईडेन गार्डेन्स के मैदान को जब लक्ष्मण नए भारत कि नींव रख रहे थे। वो भारत जिसे विपक्षी टीम को रौदने वाली आस्ट्रेलिया से डर
नहीं लगता, वो भारत जो फालोआन मिलने के बावजूद मैच जीत सकता है,
और वो भारत जिसका बल्लेबाज़ आराम से दुनिया के सबसे महान गेंदबाजी
आक्रमण को स्कूली बच्चो की तरह रुला सकता है । लक्ष्मण की उस एक पारी ने हर हिन्दुस्तानी को “हम में है दम” का एहसास कराया । ओबामा तो बहुत बाद
में “एस वी कैन” लेकर आये – आम हिन्दुस्तानी को ये चीज़ लक्ष्मण ने बहुत पहले ही सिखा दी थी । ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ईडन गाडर्न्स में लक्ष्मण की
281 रन की पारी टेस्ट
क्रिकेट के इतिहास की सबसे यादगार पारियों में से एक है। लक्ष्मण ने 134 टेस्ट में 45.97 की औसत से 8781 रन बनाए।
उन्होंने 17 शतक और 56 अर्धशतक भी जड़े
जिनकी बदौलत भारत ने कई टेस्ट जीते और कई बचाए। लक्ष्मण ने 86 ODI भी खेले जिसमें
उन्होंने 30.76 की औसत से 2338 रन भी बनाए।
आस्ट्रेलिया उनका मनपसंद शिकार था । ट्विट्टर पर एक मज़ाक काफी चर्चा में है कि जब
गाँधी जी को गोली लगी तो उनके शब्द थे “हे राम”, आस्ट्रेलियाई
कप्तानो के शब्द होंगे “हे लक्ष्मण” ।
लक्ष्मण
टीम मैन थे –
ज़रुरत पड़ी तो सलामी बल्लेबाज बने, हालाँकि वो
ऐसा कभी नहीं चाहते थे । जब टीम ने चाहा तो तीसरे नंबर पर बल्लेबाजी की, टीम कि मांग के मुताबिक चौथे, पांचवे और छठे नंबर पर
भी बल्लेबाज़ी पूरी ईमानदारी से की । अक्तूबर 2010 में ऑस्ट्रेलिया
के खिलाफ मोहाली में नाबाद 73 रन की पारी खेली जब भारत 210 रन के लक्ष्य का
पीछा करते हुए 124
रन
पर आठ विकेट गंवा चुका था। उन्होंने इशांत शर्मा के साथ नौवें विकेट के लिए 81 रन जोड़े और फिर 11वें नंबर पर
बल्लेबाजी करने आए प्रज्ञान ओझा के साथ 20 मिनट क्रीज पर बिताते हुए
भारत को जीत दिलाई। ये एक मिसाल बताती है कि वो किस मिटटी के बने है । मज़बूत इरादे
वाले शांत व्यक्ति जो बला की खूबसूरती के साथ बल्लेबाज़ी करता है । अलविदा लक्ष्मण
– हम नहीं जानते कि अब हम आपके जैसा जादूगर फिर कब देखेंगे , हम ये भी नहीं जानते कि क्या वो बल्लेबाज़ी को आपके जितना खूबसूरत बना
पायेगा, और अगर कहीं बना ले गया तो भी क्या उसमे आपके जैसी
विनम्रता बनी रहेगी .