देखे कि न देखे- बिलकुल देखिये
देखें तो क्यूँ देखे – 5
वजहे
1. कमाल
की कहानी,
2. चोर
पुलिस का रोमांचक खेल
3. जानदार
एक्टिंग.
4. बेहतरीन
डायरेक्शन,
5. आर्ट
और इंटरटेनमेंट एक साथ
कहानी क्या है - तारीख 26
जनवरी, साल है 1987। राजीव गाँधी अपनी पत्नी सोनिया के साथ
लाल किले पर है जहाँ राष्टपति ज्ञानी जैल सिंह परेड की सलामी ले रहे है। सडको पर
मारुती 800 है,
लैंडलाइन वाले फ़ोनों पर दुनिया की बाते टिकी हुई है। एकाएक मंत्री जी के घर पर चार
लोगो की सीबीआई टीम धमक पड़ती है। साथ देने के लिए सफदरजंग थाने से पुलिस की टीम भी
है। भारत की सबसे बड़ी एजेंसी की ये दबंग टीम छापा भी मारती है और मंत्री जी को भी
मारती है। सारा पैसा और आभूषण ज़ब्त करके पुलिस की टीम को मंत्री जी के यहाँ छोड़ कर
टीम निकल लेती है। काफी देर बाद मंत्री जी और पुलिस को पता चलता है कि वो बेवकूफ
बन गए है। कमाल है कि मंत्री पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं करना चाहता क्यूंकि खबर
फैल गई तो नेतागिरी तो गयी ही, दो नंबर का पैसा भी सामने आ जायेगा । फर्जी सीबीआई
ऐसी तमाम फर्जी रेड डालती है मगर तब क्या होगा जब असली सीबीआई उसके सामने आएगी ?
चोर पुलिस में कौन जीतेगा ? चोर जेल जायेंगे या बचेंगे, जायेंगे तो कैसे जायेंगे
-यही है सारी कहानी। फिल्म की कहानी कहीं कहीं आपको OCEAN 11 जैसी लग सकती है मगर तेज गति से आगे बढ़ने
के कारण आप इन बातो को सोचने के बजाय फिल्म के रोमांच में बंधे रहेंगे।
एक्टर कौन है- फर्जी सीबीआई टीम के बॉस अक्षय कुमार है। अक्षय यूँ तो
एक्शन और कामेडी के मिलेजुले घालमेल के ब्रांड एम्बेसडर है मगर OH MY GOD के बाद एक बार फिर से वो साबित करते है की
अगर उन्हें सही डायरेक्टर मिले तो कोई भी रोल उनके लिए मुश्किल नहीं है। वैसे भी
मास्टरमाइंड कांफिडेंट क्रिमिनल के रोल उन्हें सूट भी करते है। अक्षय ने अपने चयन
को सही साबित करते हुए बेहतरीन अभिनय किया है। मनोज बाजपाई की अभिनय क्षमता पर
किसी को कोई शक नहीं है और मनोज इस फिल्म में साबित करते है की शक होना चाहिए भी
नहीं। खुर्राट सीबीआई अफसर के किरदार में मनोज छा गए है। यहाँ पर तपे तपाये अनुपम
खेर का ज़िक्र भी ज़रूरी है। शर्मा जी की भूमिका में अनुपम ने गज़ब की बॉडी लैंग्वेज़
दिखाई है। सहयोगी भूमिका में जिम्मी शेरगिल, दिव्या दत्ता और किशोर कदम ने भी अपना
काम बखूबी किया है।
परदे के पीछे- ए वेडनसडे से मशहूर हुए नीरज पांडे ने स्पेशल 26 में चोर सिपाही, असली नकली के खेल को रोमांचक अंदाज़
में पेश किया है। थ्रिलर फिल्म के लिए एक चुस्त पटकथा, सधा हुआ डायरेक्शन और सिहरन
पैदा करने वाले बैक ग्राउंड म्युज़िक की ख़ास ज़रूरत होती है और नीरज पांडे ने इसका
ख़ास ख्याल रखा है। पर नीरज से एक शिकायत भी है- ए वेडनसडे में हीरोइन के बेवजह रोल से बचने वाले नीरज पांडे न जाने
क्यूँ इस फिल्म में मायाजाल में फंस गए। लव सीन और गाने फिल्म की रफ़्तार में रुकावट
ही डालते है। हालाँकि उस ज़माने को दिखाने में नीरज को पूरे अंक मिलते है. फिल्म
लोकेशन और लुक के लिहाज से अपने 80 के
दशक का एहसास कराती है।
आखिरी बात – भारतीय सिनेमा बदल रहा है। फार्मूला अभी भी चलता है मगर अब दर्शक फार्मूले
से हटकर और भी फिल्मे देखते है। स्पेशल 26 देखिये - मज़ा आएगा