एक
लाइन में – “आत्मा” देखने की ज़हमत मत उठाइये, अगर डर का मज़ा लेने के लिए पैसे ही खर्च
करने का मूड बना लिया है तो कुछ और कीजिये
हिट
या फ्लॉप – सस्ते में बनी फिल्म है और देश की जनसँख्या ज्यादा, ऐसे में अपना पैसा
तो निकाल ही लेगी
देखें
या न देखें – अब रहने भी दीजिये
कहानी
क्या है ?
बिपाशा
(माया) अपनी बच्ची निया (डोयल) की सिंगल पैरेंट है और अचानक एक दिन उन्हें पता
चलता है कि निया रोज अपने मर चुके पिता अभय (नवाजुद्दीन सिद्दकी) से बातें करती
है। तमाम ट्विस्ट और टर्न के बाद बिपाशा को पता चलता है कि उसके पति की आत्मा उसकी
बेटी को हासिल करने के मकसद से आयी है। माँ की ममता जग जाती है और फिर शुरू होती
है जंग कि कौन अपनी बेटी को हासिल करता है।
एक्टिंग
कैसी रही ?
बिपाशा बसु के खाते
में हॉरर के नाम पर पहले से ही दो हिट फिल्में हैं। राज और राज 3 पर इसका मतलब ये नहीं है कि उन्होंने कोई बहुत
ख़ास अभिनय कर दिया हो। ऐसी तमाम फिल्मो के लिए ज़्यादातर एक खास किस्म का ही
एक्सप्रेशन चाहिए होता है और बाकी काम सिचुएशन और बैक ग्राउंड म्युज़िक करता है – ऐसे
में बिपाशा और नवाज़ दोनों ने अपना काम ठीक ठाक ही किया है , हाँ बिपाशा का बार बार
चिल्लाना काफी अखरता है। नवाज़ से बड़ी अपेक्षाए है पर ऐसी फिल्मे बताती है की हर
एक्टर की एक सीमा होती है। यहाँ पर छह साल की बाल कलाकार
डोयेल धवन का जिक्र ज़रूरी है और वो तारीफ की हक़दार भी है।
बाकी
सब ?
याद कीजिये रामसे ब्रदर्स
की भुतहा फिल्मे- गंदा मेकअप, उलझे बाल, साफ़ साफ़ नकली दिखने वाले सस्ते दांत और बेवजह
का शोर, चीख-चिल्लाहट। 'आत्मा' इनसे अलग तो हैं लेकिन इसके बावजूद फिल्म आपको क्लिक
नहीं करती। अभिनय
के अलावा हॉरर फिल्मो के लिए सबसे ज्यादा ज़रूरी होता है बैकग्राउंड म्युज़िक और
स्पेशल इफेक्ट्स- इस मामले में फिल्म बेहतर है मगर फिल्म का क्लाइमेक्स कमजोर और अधूरा सा है। शायद
पार्ट 2 बनाने की जल्दी ही थी जो पार्ट 1 को बिगाड़ गयी। सुपर्ण वर्मा की कोशिश ठीक
थी पर कमज़ोर कहानी पर उलझा क्लाइमेक्स फिल्म के खिलाफ जायेगा ।
आखिरी
बात - आज कल फिल्म का
ट्रेलर जितना दमदार होता है वह बात फिल्म में नजर नहीं आती है। आत्मा भी उसी किस्म
की है
स्टार कास्ट :
बिपाशा बसु,
नवाजुद्दीन सिद्दीकी, डोयेल धवन
निर्देशक, लेखक, संवाद : सुपर्ण वर्मा
निर्माता : कुमार
मंगत पाठक,
अभिषेक पाठक