Sunday, February 13, 2011

फिल्म समीक्षा - पटियाला हाउस

जबकि सारे देश में धीरे धीरे वर्ल्ड कप का फीवर बढ़ रहा है तो ऐसे में अक्षय कुमार इस शुक्रवार क्रिकेट पर बनी अपनी फिल्म पटियाला हाउस लेकर दर्शको के बीच आये है, लेकिन अगर आपको लगे कि फिल्म में केवल क्रिकेट ही क्रिकेट है तो आप गलत है, फिल्म में क्रिकेट की नीव पर रिश्तो या यूँ कहे मेलोड्रामा की इमारत खड़ी की गयी है

कहानी कुछ यूँ है की कालेज में ही नेशनल लेवल पर अपनी पहचान बना चुके परगट सिंह कालों नि अक्षय कुमार को उसके बाऊ जी ऋषि कपूर उस वक़्त क्रिकेट छुडवा देते है जब वो केवल 17 साल का था, वजह थी अंग्रेजो से उनकी नफरत, वो नहीं चाहते है कि उनका बेटा इंग्लैण्ड के लिए खेले. परगट उर्फ़ गट्टू चुपचाप उनकी बात मान अपने सपनो का गला घोंट देता है. पर वक़्त एक बार फिर उसे मौका देता है. क्या इस बार वो क्रिकेट को चुनेगा, ये मौका उससे ज्यादा उसके परिवार वालो के लिए ख़ास था क्यूंकि सब अपनी जिंदगी में कुछ न कुछ अलग करना चाहते थे. पर बाऊ जी के आगे बेबस थे. इस बार क्या होगा, क्या गट्टू क्रिकेट खेलेगा, क्या वो कामयाब होगा. यही फिल्म कि कहानी है

बात करे अगर एक्टिंग कि तो इस बार अक्षय कुमार कुछ अलग है, अपनी पिछली हर फिल्म के मुकाबले वो यहाँ कम बोलते है और लाउड होने से बचे है. निश्चित तौर पर अक्षय कुमार को लगातार एक जैसे कॉमेडी किरदारों में देखकर हम सभी थक चुके थे, इसलिए इसे एक खुशखबरी के तौर पर लीजिये. पर कई बार बेवजह उनका लटका मुंह देखना भी खलता है, चुलबुली अनुष्‍का शर्मा खुबसूरत भी और एक्टर भी इसलिए अपना काम वो बखूबी कर ले जाती है, फिल्म में वो एक ताजगी के तौर पर है, जहाँ ऋषि कपूर ने रंग जमाया है वहीं डिम्पल कपाडिया के लिए ज्यादा कुछ नहीं था, बाकियों की बात रहने दे क्यूंकि फिल्‍म में छोटे छोटे इतने सारे किरदार हैं कि उनके चेहरे भी याद रखना मुश्किल है

फिल्म का म्युज़िक अच्छा है और गाने चार्ट बस्टर पर काफी छाये हुए है, इसके अलावा क्रिकेट फैन्स के लिए हिंदी फिल्म में सायमंड्स, अकमल, नासिर हुसैन, ग्राहम गूच और करेन पोलार्ड को देखना भी एक मज़ेदार अनुभव होगा.

निर्देशक निखिल आडवाणी ने कहानी में पारिवारिक नाटक के हिसाब से हर वो मसाला डाला है जो आपको पुराने जमाने की मेलोड्रामा की याद दिलाएगा, इसलिए गुज़ारिश यही है कि अगर आप फिल्म देखते हुए रोते है तो अपने साथ टिसू पेपर लेकर ज़रूर जाए. मुझे पटियाला हाउस वीकएंड पर परिवार के साथ जाकर देखने वाली फिल्म लगी, तो अगर आप बहुत दिनों से बेसिर पैर की कामेडी और गाली गलौच से भरा बोरिंग रियलिस्टिक सिनेमा देख कर थक गए हो तो पटियाला हाउस की सैर कर सकते है. मैं ‘पटियाला हाउस’ को पांच में तीन अंक देता हूं।

आखिर बात- विश्वास मानिये फिल्म के क्लाइमेक्स में अक्षय कुमार अपनी यार्कर से एंड्रयू सायमंड्स को बोल्ड कर देते है. मेलोड्रामा का स्वागत है

1 comment:

  1. बाबा अभी ये फिल्म समीक्षा एकदम जागरण या फिर ट्रेन में बिकने वाले अखबारों की तरह लग रही है...उम्मीद करता हूं आप इन बातों को दिल से ना लेते हुए एकदम छोटे प्यारे भाई की दिल्लगी मानेंगे...आपको थोड़ा प्रोफेशनली लिखना होगा रिव्यू...ताकि लोगों को लगे रिव्यू ना होता तो साला समझ में नहीं आता कि फिल्म कैसी है और कैसी हो सकती थी...और कैसी हो गई...आपका परम प्रतापी क्षत्रिय कुलभूषण निप्पू सिंह...

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