Sunday, January 3, 2010

साल की अनूठी शुरुवात

दो दिन तक गायब होने का गुनाहगार हो गया मै, आज दोस्तों के फोन आये की क्या मियां - दो दिनों में ही भूत उतर गया, इसलिए अब इतनी रात में आ बैठा हूँ,..वैसे भी मुझमे कोई विलक्षण पांडित्य तो है नहीं- जिसके दर्शन मै आपको करवा सकूँ. मै तो बस "कहाँ था, क्या कर रहा था, किससे मिला" जैसी बाते ही करता हूँ...हाँ, अगर कभी ज्यादा गर्मी लगी तो भाषाई चमत्कार ( 3 idiots के सन्दर्भ में) भी कर सकता हूँ .....

शुरुवात करते है 31 दिसंबर की शाम से जब दो शातिर दीपांशु और अरुणोदय के संगत में मै फंस गया, कबाब पराठे से लेकर बिरयानी तक वो सारे गुनाह किये जो पेट और जिस्म के दुश्मन है, खैर ये दुश्मनी आगे भी कायम रही. साथी बदलते गए- बढ़ते गए- दुश्मनी भी चलती गयी. सुबह घर पहुँचते पहुँचते 4 बज गए. बीच का ब्यौरा मै जानबूझ कर हज़म कर रहा हूँ, उसके बाद जो सोये तो दोपहर 12 बजे उठे .

बचपन में मम्मी ने सिखाया था की नए साल के पहले दिन की शुरुवात बड़ो के आशीर्वाद से और एक दुसरे को बधाई दे कर करते है, स्कूल में भी बदस्तूर ये सिलसिला जारी रहा. मगर शायद ये पहली बार हुआ की न किसी को फोन किया न ही एसएम्एस. हाँ जिनके बधाई सन्देश आये उन्हें ज़वाब ज़रूर दिया- और ये सुनिश्चित किया की वो सिर्फ एक फारवर्ड मैसेज न हो.

लगता है की बीती शाम के कबाब से दीपांशु का दिल नहीं भरा था तो उन्होंने फिर लंच में कबाब पराठो की ख्वाहिश जाहिर की. न करना तो मैंने सीखा ही नहीं है तो मै भी तैयार हो गया. इससे बीच करीब दो बजे आहूजा सर का फोन आया की आमिर- चेतन भगत विवाद में फिल्म के डायरेक्टर राजू हिरानी की प्रतिक्रिया लेनी है इसलिए तुम नोयडा में होटल रेडिसन निकल जाओ. दीपांशु को अट्टा जाना था तो वो भी साथ हो गए. खैर फिल्म की पूरी टीम के साथ मुलाकात तो हुई मगर राजू हिरानी ने बेहद सम्मान देते हुए कहा की उन्होंने सुबह से ब्रश भी नहीं किया (उन्हें देख कर लग भी रहा था) इसलिए वो अभी बाईट नहीं दे सकते- मै प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उनसे मिल लूँ- वो इंटरव्यू दे देंगे. हमने बहुत कोशिशे की पर कामयाब नहीं हो पाए. कोशिशो की कोई कीमत नहीं होती- परिणाम न देने के कारण मेरे प्रयास शून्य साबित हुए.......

नाकाम आशिक की तरह हम बोझिल कदमो से पीसी के लिए गए लेकिन वहां का माहोल तो अद्भुत था. आम जनता को पता चल गया था की आमिर मॉल आये है. सैकड़ो अति उत्साहित लोग सीढियो एक्सलेटर पर कब्ज़ा जमाये हुए थे.....गालियाँ देते और खाते किसी तरह जब हम आगे पहुंचे तो एक "फुंके हुए बुड्ढे" से माफ़ कीजेयेगा एक बुजुर्गवार से उलझ गए. उनका कहना था की "तुम मीडिया से हो और इसलिए कहीं भी जा सकते हो , ये क्या बात हुई" वो शायद किसी अच्छे पद से रिटायर हुए होंगे- अंग्रेजी पर उनकी पकड़ कमाल की थी. कोई और वक़्त होता तो मै ज़रूर बहस करता मगर पिछले लक्ष्य की नाकामी ने आगे के काम को कायदे से करने के लिए प्रेरित किया था इसलिए मै बिना बहस के आगे जाने लगा. झंडू पंचारिष्ट की सेवन से उर्जा लिए हुए बुजुर्ग ने फिर मुझे ललकारा, मैंने लखनवी तहजीब का ख्याल करते हुए फिर अनसुना करने का नाटक किया. तीसरी बार फिर उसके मुझे ललकारने पर मैंने शालीनता से कहा की " i am not here for fun, its my job" उसने फिर मीडिया कर्मियो को लेकर बाते कही जो साधारण मौको पर मुझे नागवार गुजरती पर मै चुपचाप सुन लिया...हाँ इस पूरे प्रकरण में आसपास जमा भीड़ ने काफी आनंद लिया- उनकी नज़र में तो मै ही खलनायक था क्यूंकि मै सरलता से अन्दर जा सकता है, खैर ये वहम भी टूट गया और सिक्योरिटी वालो ने अन्दर आने से मना कर दिया. काफी देर तक बहसबाजी के बाद अन्दर घुसने को नहीं मिला. बुजुर्गवार फिर तफरीह लेने वाले अंदाज़ में बोले अगर हमें अन्दर नहीं जाने दोगे तो इन्हें भी रोको.मेरे काम में दखल के पर्याप्त कारण हो चुके थे...इसी बीच आमिर वहां से गुज़रे, साफ़ था की वो पहुँच गए थे और हम नहीं. मै तो वैसे भी जल्दी ही आपा खोता हूँ. इस बार मैंने सिर्फ उसे घुरा. शायद उसे लगा की मै या तो काफी सीधा हूँ या काफी बेपरवाह- उसने फिर कहा हम नहीं जाने देंगे. अब मै अपनी रंग में आ चुका था- मैंने उससे कहा की " भो..... के एक लफ्ज़ भी आगे बोला तो कैमरा .....से डाल कर ...... से निकाल दूंगा. तेरी ........ को ........ , ... और तमाम ...........इसमें मेरी योग्यता को बचपन से ही काफी सम्मान मिला है- और गालियो की इस गरिमा ने असर भी दिखाया, कुछ हटे- कुछ दूर गए... इतनी देर में पीआर दिखी और उसने अन्दर आने का इंतज़ाम किया....प्रेस कांफ्रेंस में विधु विनोद चोपड़ा की बेवकूफी ने चैनल को सबसे आकर्षक खबर दी. तीन पत्रकार और उनकी यूनिट होने के कारण हमने इस खबर में तमाम साथी चैनलों को पीछे छोड़ दिया. और एक सर्वव्याप्त खबर "स्टार खबर" में बदल गयी. विधु विवाद सबको पता है इसलिए उस पर चर्चा का कोई मतलब नहीं है. उसके बाद लौटने के बाद जो तारीफ (?) मिली वो अद्भुत और अउल्लेखनीय है. पता नहीं अउल्लेखनीय कोई शब्द है भी या नहीं.

खैर रात 10 बजे वापस घर. और दीपांशु गर्ग के साथ तमाम हस्तियो के वस्त्रहरण का दौर शुरू हो गया. ये एक ऐसा कार्यक्रम है जिसे हम दोनों काफी दिल लगा कर करते है. अफवाहों और खबरों से जुडी हर सामग्री इसमें होती है. पक्ष- विपक्ष और हमारा पक्ष. इसमें बॉसेस की बुराई, साथियो की खिचाई, और कुछ हो न हो लडकियो की बाते ज़रूर होती है. दीपांशु गर्ग के पास इन मामलो की खबर अक्सर मुझसे पहले और ज्यादा सटीक होती है

दो जनवरी फायदे नुकसान की रही. मेरा जन्मदिन आने वाला है-उसके दो गिफ्ट समय से पहले ही मिल गए...जो बहुत अच्छे थे- उनके बारे में विस्तार से अगले पोस्ट में...नुकसान ऐसा की मै आज पूरे दिन खाना नहीं खा पाया, कभी मौका नहीं मिला तो कभी मन नहीं किया. तान्या दवे ने मेरे सहित कई लोगो को केक खाने के लिए बुलाया था पर बुलेटिन की वजह से वहां नहीं जा पाया. बाद में तान्या ने तफरीह भी ली की केक काफी शानदार था. बुलेटिन आज के काफी अच्छे रहे, नोयडा एनकाउंटर से लेकर फरार आतंकियो तक. देर रात उत्तरी ग्रिड में बिजली सप्लाई और कोहरे की खबर भी चढ़ गयी... कुल मिलकर एक व्यस्त दिन......

तो ये था पिछले दो दिनों का लेखा जोखा- आशा ही नहीं बल्कि पूरी उम्मीद है की धीरे धीरे मेरे पाठक कम हो जायेंगे क्यूंकि किसी को भी दिलचस्पी नहीं होगी की मैंने क्या क्या किया...पर मै फिर भी यही सब लिखूंगा क्यूंकि ये सब मेरे अपने लिए है.......................कितना स्वार्थी हूँ मै

9 comments:

  1. पाठक कम नहीं होंगे
    आप लिखते रहे

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  2. बहुत अच्छी शैली में लिखा गया आलेख काफी पसंद आया।

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  3. नववर्ष मंगलमय हो

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  4. इस नए वर्ष में नए ब्‍लॉग के साथ आपका हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. आशा है आप यहां नियमित लिखते हुए इस दुनिया में अपनी पहचान बनाने में कामयाब होंगे .. आपके और आपके परिवार के लिए नया वर्ष मंगलमय हो !!

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  5. दूबे जी ने शानदार तरीके से ब्लाग लिखने की शुरुआत की है कई जगहों पर कुछ और बेबाकी से लिख सकते थे ..लेकिन "फुंके हुए बुड्ढे" पेंच फंसा दिया कि अगर लिखा तो ठीक नही होगा.. छुपाएं नही बुड्ढ़े की खुली छूट है आपको....

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  6. Blog jagat me apka swagat hai...likhte rahen!

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  7. Aapne is aalekh ko ek dairy kee tarah likha hai...bada achha laga!

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