Wednesday, March 10, 2010

दस्तक

ये वाकई मुश्किल है, हर रोज तो बहुत दूर एक हफ्ते में भी एक बार ब्लॉग लिखना वाकई मुश्किल है, कई बार वक़्त नहीं होता तो कई बार विषय नहीं, समझ में नहीं आता की क्या लिखे....लम्बा अरसा हो रहा था यहाँ आये तो आज दे दी "दस्तक"

सबसे पहले क्या क्या हुआ इस पर बाते हो जाये...पिछला एक महीना खबरों के लिहाज़ से बेहद अहम् था. रेल बजट, आम बजट, महिला आरक्षण बिल, हॉकी वर्ल्ड कप, होली, माय नेम इस खान...सारे के सारे बड़े इवेंट .....यानि बेहद व्यस्त महीना.....इस कारन अगर दोस्तों से बात नहीं हो पायी या फिर हम मिल नहीं पाए तो सार्वजनिक रूप से मुवाफी मांगता हूँ.....

पिछले दस दिन तो और भी व्यस्त थे, तारिख 2 मार्च से मैंने अंततः जिम ज्वाइन कर लिया, 4 को बीमार पड़ गया.....आज से फिर जाना शुरू करूँगा....देखते है....

इस बीच जिस खबर ने मुझे सबसे ज्यादा उद्धेलित किया वो मकबूल फ़िदा हुसैन की थी, मैंने अपने फेसबुक में भी लिखा की " क्या हमें वाकई एम् ऍफ़ हुसैन की जरुरत है". कतर की नागरिकता हासिल करने के बाद हुसेन ने अब अपना भारतीय पासपोर्ट भी सरेंडर कर दिया, पढ़े लिखे टाईप के लोगो का एक वर्ग इस बात से आहत है की इतना बड़ा आदमी किसी और देश में ठिकाना ढूंढे ये भारत की असफलता है. हुसेन ने क्यूँ देश छोड़ा, आखिर उन्होंने ऐसा क्या किया था, इतनी उम्र हो जाने के बाद भी आखिर उन्हें भारत में उन्हें एक बड़े वर्ग की सहानुभूति क्यों नहीं मिल पाई? जो जनता ठाकरे की धमकी को एक सिरे से नकार कर शाहरुख खान की फिल्म देखने आती है, वही हुसेन के मामले में ठंडा रवैया क्यों अपनाती है? ऐसा भी नहीं है की शाहरुख खान बादशाह खान है और हुसेन पेंटर इसलिए ऐसा हुआ, बल्कि यहाँ सवाल नीयत का है, क्या भारत के अलावा ऐसा कोई देश है जहाँ अभिव्यक्ति की इतनी स्वतंत्रता है, क्या जिस देश की नागरिकता उन्होंने ली है वहां पर उन्हें इतनी आज़ादी मिलेगी की वो उस देश के बहुसंख्यको के मुख्य पूज्य का आपत्तिजनक चित्र बना कर ऐश कर सके......हुसेन अपने चित्रों के लिए तो समाज से व्यापक, सेकुलर नज़रिए की मांग करते हैं, पर बदले में सेकुलरिज्म के नाम पर वो समाज के वर्ग विशेष को छेड़ते रहे है .....शायद इसी कारण हुसेन किसी का दिल नहीं जीत सके चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान......

इसी बीच बाबाओ ने भी अपनी काली करतूतों से धर्म और समाज को धक्का दिया, मुझे आज भी समझ में नहीं आता की लोग इन बाबाओ के पास जाते ही क्यों है,......... मां-बाप और शिक्षको को सम्मान दो, पेशे को लेकर ईमानदार रहो, किसी को तकलीफ न पहुँचाओ, औरतो की इज्ज़त करो और देश को लेकर वफादार रहो, यही वो कुछ बाते होती है जो इंसानियत को मज़बूत करती है और ये सब हमें बचपन में ही स्कूल में पढाया जाता है फिर आखिर इन बाबाओ की शरण में लोग क्यूँ जाते है.. ऐसा कौन सा नया ज्ञान वो दे देते है...ऐसा नहीं है की मैंने इनके प्रवचन सुना नहीं है....सुनकर ही कह रहा हूँ की ये कुछ भी नया नहीं बोलते .......फिर भी लोग अपना काम धाम छोड़ कर बाबा की जय करते रहते है....मुझे ये बड़ा अजीब लगता है......आपकी राय मुझसे अलग हो सकती है.....पर बाबा और उसका मायाजाल विचित्र है.... एक इक्षाधारी बाबा भीमानंद पकड़ा गया जो देह व्यापर में शामिल था, एक गाज़ियाबाद का बाबा था जिसने लड़की का अपहरण किया था, नित्यानद स्वामी का सेक्स टेप आया....लानत है .....

खैर समाज पर ज्ञान बहुत हो गया.....इधर ऑफिस में फेसबुक फिर से बैन हो गया तो पता नहीं चलता की किसकी ज़िन्दगी में क्या चल रहा है, पर ज़्यादातर दोस्त मज़े में है..... UPSC पर की चाट के काफी चक्कर लग गए लेकिन अब चूँकि जिम ज्वाइन कर लिया है तो खाने पीने पर भी संयम रखने की कोशिश करूँगा,...समन्विता घोष ने भी ब्लाग की दुनिया ज्वाइन कर ली है...उनका स्वागत है, उन्हें पढने के लिए आप http://samanwitaghosh.blogspot.com/ पर जा सकते है......आज के लिए इतना ही फिर कुछ ख्याल आया तो जरुर बाटने की कोशिश करूँगा .

1 comment:

  1. फ्री एड के लिये बहुत शुक्रिया। आपकी तो लंबी फैन फौलोइंग है,ज़ाहिर है कुछ और लोगों के साथ जुड़ने का मौका मिलेगा। रही बात हुसैम साहब की, तो खैर उनकी पेंटिंग्स विवादों से दूर रहनेवालों को भी एकबार सोचने को मजबूर करती है।
    जहां तक बाबाओं का प्रश्न है, सभी बुरे नहीं हैं। हां पर उनके जाने की कोई ठोस वजह नहीं मिली मुझे!सही कहा जो बचपन से पढ़ते-सुनते आयें हैं वो मानवीयता और एक बैलेंस्ड जीवन जीने के लिये काफी है। मुझे लगता है, क्या इंसान खुद को लेकर इतना आशंकित रहता है कि उसे बाहरी बाबा ज्ञान की जरुरत होती है किसी दृष्टिकोण के लिये...

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