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कुछ ही महीने पहले उत्तरी कोरिया के चलते एक अनचाहे युद्ध के बादल पूरी दुनिया पर मंडरा रहे थे और आज यही हाल सीरिया की वजह से है। दक्षिण पश्चिम एशिया में हो रही घटनाएं पूरी दुनिया पर असर डाल रही हैं और भारत भी इससे अछूता नहीं है। एक अफवाह उड़ी कि अमेरिका ने सीरिया पर मिसाइल छोड़ दी और मुंबई में दलाल स्ट्रीट का चेहरा उतर गया। पहले से ही खस्ता हाल सेंसेक्स औंधे मुंह गिर पड़ा। पर ये तो एक बानगी है, अगर समय रहते सीरिया के हालात नहीं सुधरे तो आने वाला वक़्त हमारे आपके लिए और मुश्किल हो सकता है।
दरअसल गृहयुद्ध में लम्बे वक़्त से फंसे सीरिया के आज के हालात में दो सबसे बड़े टर्निंग पॉइंट हैं। पहला राष्ट्रपति असद का घरेलू संघर्ष में अपने ही लोगों के खिलाफ रासायनिक हथियारों का तथाकथित रूप से प्रयोग करना और दूसरा इन कैमिकल हथियारों के इस्तेमाल के विरोध में अमेरिका और फ्रांस का सीरिया पर सैन्य कार्रवाई का मन बनाना। यहां पर एक बात समझने वाली है कि अपने पड़ोसी लीबिया की तरह सीरिया कोई बड़ा तेल उत्पादक नहीं है और न ही मिस्र की तरह तेल और गैस के लिए बड़ा ट्रांज़िट प्वाइंट। फिर अचानक सीरिया दुनिया की बड़ी ताकतों के निशाने पर कैसे आ गया। कुछ जानकारों का कहना है कि सीरिया में चल रहे गृह युद्ध में ईरान का समर्थन राष्ट्रपति असद को हासिल है और अगर अमेरिका मित्र राष्ट्रों के साथ सीरिया पर हमला करेगा तो ईरान प्रतिक्रिया देने पर मजबूर हो जाएगा। अमेरिका को इसी बहाने ईरान पर हमला करने का मौका मिल जाएगा जिसके लिए वो काफ़ी समय से बेताब है। अमेरिका ईरान को भी ईराक की तरह कब्जे में लेना चाहता है क्योंकि तेल के खेल में ईरान सुपर पावर है। भारत में वैसे ही रुपया हर दिन कमज़ोर होता जा रहा है और पेट्रोलियम मंत्री मोइली ईरान से सस्ता तेल मंगाने की बात लगातार कर रहे हैं, ऐसे में अगर सीरिया पर हमला हुआ तो भारत क्या, आधी से ज़्यादा दुनिया तेल के लिए तरस जाएगी।
लेकिन बात केवल तेल या उसके पैसे की ही नहीं बल्कि उससे कहीं बढ़कर है। चोट इंसानियत को लगी है। सीरिया में आज कई लाख लोग विस्थापन का शिकार हैं। बहुत से सीरियाई तुर्की, जॉर्डन और लेबनान जैसे पड़ोसी देशों में शरण ले रहे हैं। साल 2011 से चल रहे गृहयुद्ध में वहां अब तक कई हजार लोगों की मौत हो चुकी है। आरोपों के मुताबिक सीरिया में पिछले महीने हुए हमलों में एक हजार टन से ज़्यादा रसायनों का इस्तेमाल हुआ जिनमें सरीन और मस्टर्ड गैस जैसे खतरनाक रसायन शामिल थे। नाटो के मुताबिक उसके पास इस कैमिकल हमले के पक्के सबूत हैं जिनमें 1429 लोग मारे गए। मारे गए लोगों में 400 से ज्यादा मासूम बच्चे थे।
अपने ही लोगों पर रासायनिक हथियार के आरोपों से घिरे असद दुनिया के दबाव के सामने बैकफुट पर हैं। फ़्रांस और अमेरिका ने इस पूरे मसले पर सबसे पहले नज़रें टेढ़ी कीं। फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांड ने सीरिया की राजधानी दमिश्क में रासायनिक हमलों के लिए सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रपति बशर अल असद के नेतृत्व में सीरियाई सेना को ही जिम्मेदार ठहराया है। ओलांड ने सीरिया पर सैन्य कार्रवाई के लिए संयुक्त यूरोपीय कार्रवाई की मांग की है। वहीं सीरिया अमेरिका और फ्रांस के इन आरोपों को ठुकराता है कि उसने अपने नागरिकों पर रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया।
दुनिया सीरिया के मुद्दे पर दो भागों में बंटी साफ़ नज़र आ रही है। एक तरफ फ्रांस और अमेरिका हैं जो सीरिया में सैन्य कार्रवाई की पुरजोर वकालत कर रहे हैं और दूसरी तरफ रूस और चीन लगातार सीरिया में किसी भी तरह के बाहरी हस्तक्षेप का विरोध कर रहे हैं। रूस ने साफ़ कहा है कि दमिश्क में रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल से जुड़े जो सबूत पेश किए गए हैं, उनसे वह पूरी तरह असहमत है इसीलिए वो अमेरिका द्वारा सीरिया पर सैन्य कार्रवाई की योजना के खिलाफ है। अमेरिका और मित्र देशों को बड़ा झटका ब्रिटेन की तरफ से लगा जहां संसद में सीरिया हमले का प्रस्ताव गिर गया हालांकि प्रधानमंत्री कैमरून अभी भी मंज़ूरी की कोशिशों में लगे हैं। इसी बीच, मिस्र में अरब लीग के विदेश मंत्रियों के बैठक में अंतिम प्रस्ताव पारित किया गया है। इस प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की गई है कि सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद को कड़ा सबक सिखाया जाए। नई दिल्ली में फ्रांस के राजदूत ने भारत में भी विदेश मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात कर सीरिया पर समर्थन मांगा है।
हालांकि तमाम दावों के बीच ओबामा अभी भी ‘सीमित और समुचित’ हमले की बात करने के साथ-साथ ये भी साफ़ कर रहे हैं कि वो सीरिया में सैनिक नहीं उतारेंगे। व्हाइट हाउस में अमेरिकी सांसदों से मुलाक़ात में ओबामा ने कहा कि वो केवल सीरिया की ‘रासानिक हथियार इस्तेमाल करने की क्षमताओं’ को ख़त्म करना चाहते हैं। इसी बीच अमेरिकी नेवी ने भूमध्य सागर में पानी और जमीन पर हमला करने वाला जहाज तैनात कर दिया है। जबकि मिसाइल से लैस पांच डिस्ट्रॉयर पहले से ही तैनात हैं। जाहिराना तौर पर सीरिया युद्ध के मुहाने पर खड़ा है।
दमिश्क दुनिया के प्राचीनतम शहरों में से एक है। अपनी रूमानी कहानियों के लिए मशहूर सीरिया की ये राजधानी आज लाशों के अम्बार पर बैठी है। इंसान को मारने से पहले इंसानियत को मार दिया जाता है। अफ़सोस की कई हजार मौतें और लाखों के विस्थापन के बाद भी ये सिलसिला यहीं थम जाएगा ऐसा अभी भी लग नहीं रहा।