Friday, September 6, 2013

सीरिया पर घमासान

पहले से ही IBN7 KHABAR पर पोस्ट मेरे ब्लॉग को यहाँ भी पेस्ट कर रहा हूँ- http://khabar.ibnlive.in.com/blogs/127/915.html
कुछ ही महीने पहले उत्तरी कोरिया के चलते एक अनचाहे युद्ध के बादल पूरी दुनिया पर मंडरा रहे थे और आज यही हाल सीरिया की वजह से है। दक्षिण पश्चिम एशिया में हो रही घटनाएं पूरी दुनिया पर असर डाल रही हैं और भारत भी इससे अछूता नहीं है। एक अफवाह उड़ी कि अमेरिका ने सीरिया पर मिसाइल छोड़ दी और मुंबई में दलाल स्ट्रीट का चेहरा उतर गया। पहले से ही खस्ता हाल सेंसेक्स औंधे मुंह गिर पड़ा। पर ये तो एक बानगी है, अगर समय रहते सीरिया के हालात नहीं सुधरे तो आने वाला वक़्त हमारे आपके लिए और मुश्किल हो सकता है।
दरअसल गृहयुद्ध में लम्बे वक़्त से फंसे सीरिया के आज के हालात में दो सबसे बड़े टर्निंग पॉइंट हैं। पहला राष्ट्रपति असद का घरेलू संघर्ष में अपने ही लोगों के खिलाफ रासायनिक हथियारों का तथाकथित रूप से प्रयोग करना और दूसरा इन कैमिकल हथियारों के इस्तेमाल के विरोध में अमेरिका और फ्रांस का सीरिया पर सैन्य कार्रवाई का मन बनाना। यहां पर एक बात समझने वाली है कि अपने पड़ोसी लीबिया की तरह सीरिया कोई बड़ा तेल उत्पादक नहीं है और न ही मिस्र की तरह तेल और गैस के लिए बड़ा ट्रांज़िट प्वाइंट। फिर अचानक सीरिया दुनिया की बड़ी ताकतों के निशाने पर कैसे आ गया। कुछ जानकारों का कहना है कि सीरिया में चल रहे गृह युद्ध में ईरान का समर्थन राष्ट्रपति असद को हासिल है और अगर अमेरिका मित्र राष्ट्रों के साथ सीरिया पर हमला करेगा तो ईरान प्रतिक्रिया देने पर मजबूर हो जाएगा। अमेरिका को इसी बहाने ईरान पर हमला करने का मौका मिल जाएगा जिसके लिए वो काफ़ी समय से बेताब है। अमेरिका ईरान को भी ईराक की तरह कब्जे में लेना चाहता है क्योंकि तेल के खेल में ईरान सुपर पावर है। भारत में वैसे ही रुपया हर दिन कमज़ोर होता जा रहा है और पेट्रोलियम मंत्री मोइली ईरान से सस्ता तेल मंगाने की बात लगातार कर रहे हैं, ऐसे में अगर सीरिया पर हमला हुआ तो भारत क्या, आधी से ज़्यादा दुनिया तेल के लिए तरस जाएगी।
लेकिन बात केवल तेल या उसके पैसे की ही नहीं बल्कि उससे कहीं बढ़कर है। चोट इंसानियत को लगी है। सीरिया में आज कई लाख लोग विस्थापन का शिकार हैं। बहुत से सीरियाई तुर्की, जॉर्डन और लेबनान जैसे पड़ोसी देशों में शरण ले रहे हैं। साल 2011 से चल रहे गृहयुद्ध में वहां अब तक कई हजार लोगों की मौत हो चुकी है। आरोपों के मुताबिक सीरिया में पिछले महीने हुए हमलों में एक हजार टन से ज़्यादा रसायनों का इस्तेमाल हुआ जिनमें सरीन और मस्टर्ड गैस जैसे खतरनाक रसायन शामिल थे। नाटो के मुताबिक उसके पास इस कैमिकल हमले के पक्के सबूत हैं जिनमें 1429 लोग मारे गए। मारे गए लोगों में 400 से ज्यादा मासूम बच्चे थे।
अपने ही लोगों पर रासायनिक हथियार के आरोपों से घिरे असद दुनिया के दबाव के सामने बैकफुट पर हैं। फ़्रांस और अमेरिका ने इस पूरे मसले पर सबसे पहले नज़रें टेढ़ी कीं। फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांड ने सीरिया की राजधानी दमिश्क में रासायनिक हमलों के लिए सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रपति बशर अल असद के नेतृत्व में सीरियाई सेना को ही जिम्मेदार ठहराया है। ओलांड ने सीरिया पर सैन्य कार्रवाई के लिए संयुक्त यूरोपीय कार्रवाई की मांग की है। वहीं सीरिया अमेरिका और फ्रांस के इन आरोपों को ठुकराता है कि उसने अपने नागरिकों पर रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया।
दुनिया सीरिया के मुद्दे पर दो भागों में बंटी साफ़ नज़र आ रही है। एक तरफ फ्रांस और अमेरिका हैं जो सीरिया में सैन्य कार्रवाई की पुरजोर वकालत कर रहे हैं और दूसरी तरफ रूस और चीन लगातार सीरिया में किसी भी तरह के बाहरी हस्तक्षेप का विरोध कर रहे हैं। रूस ने साफ़ कहा है कि दमिश्क में रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल से जुड़े जो सबूत पेश किए गए हैं, उनसे वह पूरी तरह असहमत है इसीलिए वो अमेरिका द्वारा सीरिया पर सैन्य कार्रवाई की योजना के खिलाफ है। अमेरिका और मित्र देशों को बड़ा झटका ब्रिटेन की तरफ से लगा जहां संसद में सीरिया हमले का प्रस्ताव गिर गया हालांकि प्रधानमंत्री कैमरून अभी भी मंज़ूरी की कोशिशों में लगे हैं। इसी बीच, मिस्र में अरब लीग के विदेश मंत्रियों के बैठक में अंतिम प्रस्ताव पारित किया गया है। इस प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की गई है कि सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद को कड़ा सबक सिखाया जाए। नई दिल्ली में फ्रांस के राजदूत ने भारत में भी विदेश मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात कर सीरिया पर समर्थन मांगा है।
हालांकि तमाम दावों के बीच ओबामा अभी भी ‘सीमित और समुचित’ हमले की बात करने के साथ-साथ ये भी साफ़ कर रहे हैं कि वो सीरिया में सैनिक नहीं उतारेंगे। व्हाइट हाउस में अमेरिकी सांसदों से मुलाक़ात में ओबामा ने कहा कि वो केवल सीरिया की ‘रासानिक हथियार इस्तेमाल करने की क्षमताओं’ को ख़त्म करना चाहते हैं। इसी बीच अमेरिकी नेवी ने भूमध्य सागर में पानी और जमीन पर हमला करने वाला जहाज तैनात कर दिया है। जबकि मिसाइल से लैस पांच डिस्ट्रॉयर पहले से ही तैनात हैं। जाहिराना तौर पर सीरिया युद्ध के मुहाने पर खड़ा है।
दमिश्क दुनिया के प्राचीनतम शहरों में से एक है। अपनी रूमानी कहानियों के लिए मशहूर सीरिया की ये राजधानी आज लाशों के अम्बार पर बैठी है। इंसान को मारने से पहले इंसानियत को मार दिया जाता है। अफ़सोस की कई हजार मौतें और लाखों के विस्थापन के बाद भी ये सिलसिला यहीं थम जाएगा ऐसा अभी भी लग नहीं रहा।

Sunday, August 18, 2013

चस्का - कश्मीरी ज़ायका

        यूँ तो खाने को सबसे बड़ी इंसानी ज़रूरत के तौर पर लिया जाता है मगर कई लोगों के लिए ये उससे कुछ ज्यादा यानीशौकभी है। मैं ऐसे ही लोगों में आता हूँ। क्या घर क्या बाहर, ख़ाने को लेकर मेरी दीवानगी जुनून के तौर पर है। घाट-घाट का खाना खाने के बाद सोचा क्यों न अपने दोस्तों से इसे शेयर किया जाए। आज से इसकी शुरुआत कर रहा हूं जिसमें सबसे पहले कश्मीर का ज़ायका जहाँ मैं 2011 में गया था। हालाँकि उससे पहले तमाम जगहों पर कश्मीरी दम आलू और कश्मीरी पुलाव के मज़े लिए पर सोचा कि जब बाहर इतना शानदार बनता है तो कश्मीर में तो कमाल ही मिलेगा।

        डल लेक पर ठहरने के बाद जब सफ़र में मेरे साथी दीपांशु रूम फैसिलिटी चेक कर रहे थे तब मैं मेनू पढ़ रहा था। पढ़ते-पढ़ते ही ख्वाब सजने लगे, मुंह में पानी आ गया। कितना कुछ था उसमें, मसलन रिस्ता जो भेड़ के मीट का बना होता है, गोश्तबा, तबक माज, रोगन जोश जो रिफाइंड या किसी अन्य घी तेल में नहीं बल्कि रोग़न यानि चर्बी के फैट से बना होता है और मर्चवागन कोरमा यानी बेहद तीखी मटन करी जो ज़्यादातर चावल के साथ ही खायी जाती है। लेकिन दीपांशु शाकाहारी थे, मतलब ये कि ये सब कुछ हमें अकेले ही खाना था। अकेले खाने का सबसे बड़ा नुकसान ये कि आप ज्यादा चीज़ें आज़मा नहीं सकते। खैर हमने भी हिम्मत नहीं हारी।

        दिल्ली से चलते वक़्त जो रिसर्च की थी उसमे वाज़वान का बड़ा ज़िक्र था। प्लेन में भी सहयात्री ने न केवल वाज़वान की बड़ी तारीफ की बल्कि दो तीन अड्डे भी बताये। हमारे कश्मीरी दोस्त आसिफ कुरैशी ने भी वाज़वान के कसीदे पढ़े थे। पता चला कि कश्मीर घाटी में समरकंद के खानसामों के वंशज, जो खाना बनाने में उस्ताद थे यानी आज की ज़ुबां में कश्मीर के मास्टर शेफ थे, उन्हें वाजाकहा जाता था। इसमें यूँ तो पारंपरिक तरीके से सात किस्म के पकवान होते है लेकिन उसे भव्य रूप देने के लिए छत्तीस किस्म के व्यंजनों का एक बुके तैयार करते थे जो वाज़वान कहलाता हैं। यूँ तो ये तमाम बड़े होटलों और रेस्तरां में मिलता है पर अपने असल रंग में ज़्यादातर कश्मीरी शादियों में ही दिखता है। शादियों में आए मेहमान चार लोगो के ग्रुप में बैठते हैं और एक बड़ी सी प्लेट में से, जिसे त्रामीकहते है, साथ ही खाना खाते हैं।

        कश्मीरी ख़ाने में एक बात जो साफ़ दिखती है वो है तरी में दही का इस्तेमाल। दही से तरी काफी गाढ़ी हो जाती है। तरी को और निखार देने के लिए सूखे मेवों मसलन अखरोट, बादाम और किशमिश का भी प्रयोग होता है। इसके अलावा खुशबू के लिए इलायची, दालचीनी, लौंग और केसर का इस्तेमाल किया जाता है। कश्मीरी शायद चावल ज्यादा खाते हैं क्योंकि पहली रोटी के बाद ही वेटर ने हमसे मुस्कुराते हुए पूछा राइस” ? हमने भी उन्हें उतना ही मुस्कुराते हुए इशारे से दो और रुमाली रोटी के लिए कह दिया। वैसे भी कश्मीर में प्राचीन काल से ही ब्राहमण मांसाहारी थे, शायद ऋग्वेद में भी इसका उल्लेख भी है इसलिए मैंने भी कोई संकोच नहीं बरता।

        ऐसा नहीं है कि शाकाहारियों के लिए ये जगह नहीं थी। दम आलू, और कश्मीरी पुलाव का जिक्र तो सबने सुना है पर कमल ककड़ी के कबाब जैसी कई और नायाब चीज़े थी। कोरमा साग जिसे डल लेक में पैदा होने वाली हरी सब्ज़ी ‘हाकसे बनाया जाता है। हालांकि इसे मैंने खाया नहीं लेकिन दूर से देखने में ये पालक की साग जैसी लग रही थी। हम उत्तर भारतीयों में तमाम ड्राई फ्रूट्स औए इत्मीनान से पकाए जाने वाला कश्मीरी पुलाव बेहद मशहूर है, जिसे खाने के बाद बचे होने पर हम पैक कराके भी ले आये लेकिन बिना कश्मीरी दम आलू के हर ज़िक्र अधूरा है। यूँ तो दम आलू का नाम आते ही मूंह में पानी आ जाता हैं लेकिन असल दम आलू मुंह में तब आया जब मैं जम्मू में अपने दोस्त अजय बाचलू के यहाँ गया। आलू आधा कच्चा रहने तक उबालने के बाद बीच से आधा कर के तला जाता है। न जाने क्या-क्या मसाले थे लेकिन वाह! क्या उम्दा स्वाद था।

       सबसे आखिरी में ज़िक्र कश्मीरी चाय यानी कहवा का। केसर, इलायची और बादाम से बनी कहवा। बिलकुल अलग और क्या शानदार स्वाद वाली चाय थी कहवा। हालाँकि थोड़ी मीठी थी लेकिन शायद इसे भी कम शक्कर-तेज़ पत्तीवाले अंदाज़ में बनाया जा सकता हो।

       ये वो कुछ ख़ास चीज़ें थी जो मेरे दिल-ओ-दिमाग में कश्मीरी ज़ायके के तौर पर पैबस्त हैं। अगर आप कुछ और जानते हों तो बताएं। वैसे बता कर क्या करेंगे, सीधे बुला ही लीजिये।


Saturday, August 17, 2013

कौन है अब्दुल करीम टुंडा

             दरअसल टुंडा एक फ्रीलान्स किलर है जो भाड़े पर ब्लास्ट करता है- पैसे लेकर उसने कभी दाऊद तो कभी लश्कर और कभी जैश के लिए धमाके किए –

नाम : सईद अब्दुल करीम उर्फ टुंडा

मूल निवासी : पिलखुवा , अशोक नगर

4 भाषाओं हिंदी , गुजराती , उर्दू और इंगलिश की जानकारी

अगस्त 1994 में 5 मामलों में सीबीआई ने एक चार्जशीट अजमेर की टाडा अदालत में दाखिल की थी।

कैसे आया सुरक्षा एजेंसियों की निगाह में: 1993 में देश के कई हिस्सों में बम ब्लास्ट हुए थे। कई ट्रेनों में हुए धमाकों की जांच की गई तो इसमें अमोनियम नाइट्रेट और पोटैशियम नाइट्रेट यूज होने की बात सामने आई। खुफिया सूत्रों के मुताबिक , इसके बाद जानकारी मिली कि ये केमिकल गाजियाबाद के पिलखुवा में कपड़ों की रंगाई करने वाले इस्तेमाल करते हैं। इसके बाद ही टुंडा के बारे में जांच शुरू हो गई थी।

अब्दुल करीम टुंडा लश्कर-ए-तैयबा का बम एक्सपर्ट है. टुंडा दाऊद और हाफिज सईद का करीबी है. टुंडा आतंकी संगठन लश्करे तैयबा के अलावा जैशे मोहम्मद और मरकज अल दावा (अब इसका नाम जमात-उद दावा है) से भी जुड़ा रहा है.
अब्दुल करीम टुंडा को वेस्टर्न यूपी में आतंक का जनक माना जाता है
 इंटरपोल के लिए एक पहेली बन चुका टुंडा बम बनाने का मास्टर है। कभी उसकी पाकिस्तान में होने की चर्चा रही तो कभी केन्या और कभी बांग्लादेश में होने की
 गाजियाबाद पुलिस के रेकॉर्ड में टुंडा के खिलाफ 13 मामले दर्ज हैं।
 इसके अलावा दिल्ली के सदर बाजार , मालवीय नगर और राजस्थान समेत देश के कई हिस्सों में भी उसके खिलाफ मुकदमे दर्ज हैं।
 बताया जाता है कि उसका परिवार पाकिस्तान में है।
पिलखुवा के अशोक नगर का अब्दुल करीम उर्फ टुंडा एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखता है। पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों से बचने के लिए उसने अशोक नगर , पिलखुवा में ही अपना गुप्त अड्डा बना लिया था।

 1992 में टुंडा अचानक अपनी बीवी जरीना के साथ कहीं लापता हो गया था। 2 साल बाद वह अपनी दूसरी बीवी मुमताज के साथ लौटा था। इसी दौरान उसके आतंकियों से संबंध हो गए थे।

 1995 में देश की खुफिया एजेंसियों को उसके बारे में जानकारी मिली। हालांकि जब तक सुरक्षा एजेंसियां छापा मारकर उसे दबोचने की कोशिश करतीं , तब तक वह भाग निकला। उसके घर से एजेंसियों को कई आपत्तिजनक कागज और बम बनाने का सामान मिला था।

टुंडा 1996 से 1998 के बीच भारत में अलग-अलग जगहों पर हुए बम धमाकों का मास्टरमाइंड रह चुका है.

इतना ही नहीं 2000 से 2005 तक माना जाता था कि टुंडा मर चुका है, लेकिन 2005 LeT चीफ कॉर्डिनेटर अब्दुल रजाक मसूद ने गिरफ्तारी के बाद खुलासा किया था कि टुंडा अभी भी जिंदा है. उसने खुलासा किया था कि टुंडा जिंदा है और उसकी पत्नी और दो बच्चे भी हैं.

26/11 के मुंबई हमलों के बाद पाकिस्तान को सौंपे गए डोजियर में टुंडा का नाम 15वें स्थान पर था. इस हमले में 166 लोगों की मौत हुई थी

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने 80 के दशक में ट्रेनिंग दी थी, साल 2000 में भारत की खुफिया एजेंसियां उसके करीब पहुंच गई थीं, लेकिन केन्या पुलिस ने उस वक्त उसे भारत को सौंपने से इनकार कर दिया था




Thursday, August 15, 2013

मनमोहन और मोदी के भाषण की तुलना


 

मनमोहन

 

मोदी

 

·         प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लाल किले की प्राचीर से देशवासियों को संबोधित करते हुए अपने भाषण में देश के सामने मौजूद समस्‍याओं का जिक्र किया। उन्‍होंने यह भी कहा कि इन समस्‍याओं से निपटने के लिए अभी और कदम उठाए जाने की जरूरत है। मनमोहन सिंह ने लगातार दसवीं बार बतौर पीएम लाल किले पर तिरंगा फहराया है। 

·         पीएम ने अपने भाषण की शुरुआत उत्‍तराखंड में पिछले दिनों आई प्राकृतिक आपदा को याद करते हुए किया। उन्‍होंने वहां के राहत बचाव काम की तारीफ भी की। इसके बाद उन्‍होंने मुंबई में हुए आईएनएस सिंधुरक्षक हादसे पर दुख जताया।

·         उन्‍होंने कहा, 'फूड सिक्‍योरिटी बिल संसद के सामने है। उम्‍मीद है कि यह बिल जल्‍द ही पास हो जाएगा। इसका फायदा देश की अधिकतर आबादी को मिलेगा। इससे 81 करोड़ भारतीयों को सस्‍ता अनाज मुहैया कराया जा सकेगा। इस योजना के तहत तीन रुपये प्रति किलो चावल, दो रुपये प्रति किलो गेहूं और एक रुपये प्रति किलो मोटा अनाज दिया जाएगा। यह दुनिया भर में इस तरह का सबसे बड़ा प्रयास है।'

·         पीएम ने कहा कि मिड-डे मील योजना के तहत हर रोज 11 करोड़ बच्‍चों को फायदा हो रहा है। हालांकि उन्‍होंने बिहार के छपरा में हुए मिड-डे मील हादसे पर दुख जताते हुए कहा कि ऐसा हादसा फिर कभी नहीं होना चाहिए। 

·         पीएम ने दावा किया कि पिछले 10 साल में सबसे ज्‍यादा आर्थिक सुधार हुआ है। उन्‍होंने कहा कि शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए अभी और काम करना है। बिजली उत्‍पादन में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है। 

·         अर्थव्‍यवस्‍था का जिक्र करते हुए पीएम ने कहा कि पिछले साल हमारी विकास दर पांच फीसदी से कम रह गई, यह सच है। केवल हमारा देश ही ऐसी कठिनाईयों का सामना नहीं कर रहा है, सभी विकासशील देशों में आर्थिक मंदी का माहौल है। यूरोप में भी मंदी चल रही है।

·         राष्‍ट्रीय सुरक्षा पर पीएम ने कहा, 'हाल में एलओसी पर हमारे जवानों पर कायरतापूर्ण हमला किया गया। इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए हम हरसंभव कोशिश करेंगे।' उन्‍होंने यह भी माना कि सरकार नक्‍सलवाद को पूरी तरह रोकने में नाकाम रही है।

·         जानकारों के मुताबिक पीएम ने बेहद कम समय में अपना भाषण समाप्‍त कर दिया। जानकारों का कहना है कि आमतौर पर लालकिले पर पीएम के भाषण के लिए 32 से 52 मिनट तक का समय निर्धारित होता है। लेकिन मनमोहन सिंह ने आज करीब 30 मिनट में ही अपना भाषण समाप्‍त कर दिया। 


 

·         नरेंद्र मोदी ने भुज के लालन कॉलेज से देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को खुली चुनौती दे डाली। मोदी ने मनमोहन सिंह से कहा कि हम छोटे राज्य हैं, आप तो देश चला रहे हैं। लेकिन गुजरात और दिल्ली की रेस हो जाए, पता चल जाएगा कि आप क्या कर रहे हैं, हम क्या कर रहे हैं?   


·         गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालन कॉलेज में तिरंगा फहराने के बाद सबसे पहले देश को आज़ाद कराने वाले शहीदों को नमन किया। उसके बाद कहा कि आज भी हम लोग मानसिक तौर पर गुलाम हैं।  


·         मोदी ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के भाषण का सहारा लेते हुए प्रधानमंत्री पर निशाना साधा।

·         मोदी ने कहा, 'राष्ट्रपति ने कल पाकिस्तान के संबंध में कहा कि सहनशक्ति की सीमा होती है।

·         आज मुझे आशा थी कि प्रधानमंत्री राष्ट्रपति की बात को आगे बढ़ाएंगे। मैं मानता हूं कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों को देखते हुए प्रधानमंत्री के स्तर पर क्या बोला जाना चाहिए, यह मुझे मालूम है। लेकिन देश की सेना का मनोबल बढ़ाने वाला बयान दिया जाना चाहिए।

·         मैं मानता हूं कि लाल किला पाकिस्तान को ललकारने की जगह नहीं है। लेकिन यह जगह देश की सेना का मनोबल बढ़ाने वाला जरूर है। भ्रष्टाचार बड़ी समस्या है। राष्ट्रपति जी चिंतित है।

·         आज देश में देश में सास बहू और दामाद का सीरियल चल रहा है। मैं लाल किले से दिए गए प्रधानमंत्री के भाषण को इसलिए सुन रहा था कि मेरे जैसे कार्यकर्ता को नई प्रेरणा मिले। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मैं बहुत निराश हुआ।'

·         मोदी ने कहा, 'प्रधानमंत्री ने सिर्फ एक परिवार को याद किया। उन्होंने सरदार पटेल और लाल बहादुर शास्त्री को याद नहीं किया। आप अटल बिहारी वाजपेयी को याद न करें यह तो समझ में आता है, लेकिन आप पटेल और शास्त्री को याद न करें तो दिल को चोट पहुंचती है।'

·         मोदी ने प्रधानमंत्री को ललकारते हुए, 'पंडित नेहरू ने अपने पहले भाषण में जो समस्याएं गिनाई थीं, वही समस्याएं आपने भी गिनाईं। आपने 60 साल में क्या किया? आप एक परिवार की भक्ति में इतने डूब गए हैं कि उत्तराखंड की मदद करने वाले राज्यों का जिक्र भी नहीं किया। मैं मरू भूमि कच्छ के भुज से बोल रहा हूं। मेरी बात पहले पाकिस्तान सुन लेगा, दिल्ली बाद में सुनेगी।हमने जैसे अंग्रेजों से देश को मुक्त किया वैसे ही भ्रष्टाचार, महंगाई, परिवारवाद, आतंकवाद से मुक्त कराना है।

·         इससे पहले आजादी की 67वीं सालगिरह की पूर्व संध्या पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चुनौती दी थी। उन्होंने बुधवार को कहा, ‘स्वतंत्रता दिवस पर देश की नजर दो स्थलों पर होगी। एक-लालकिला। दूसरा-लालन कॉलेज (भुज)। इस दिन हमेशा की तरह फिर थोथी बयानबाजी की जाएगी। जबकि दूसरी जगह से लोगों को विकास की राह दिखाई जाएगी। जनता को किए गए कार्यों का हिसाब दिया जाएगा।’ 


·         मोदी ने कच्छ मुख्यालय भुज में एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। गुजरात सरकार राष्ट्रीय महत्व के पर्व राजधानी से बाहर जिला मुख्यालयों में मनाती है। साल-2013 के राज्य स्तरीय स्वतंत्रता दिवस की मेजबानी कच्छ को मिली है। गुरुवार को मुख्य समारोह भुज के लालन कॉलेज मैदान पर होना है। मोदी ने देश के नौजवानों से अपील की कि वे उन्हें देश को सही दिशा में ले जाने के लिए समर्थन दें।