Friday, May 27, 2011

Movie Review – कुंग फू पांडा 2

हॉलीवुड की फिल्मों में एनीमेशन फिल्मो की खास जगह है, ये फिल्मे न केवल बड़े बजट की होती है बल्कि कमाई के मामले में भी काफी आगे निकलती है, ज़ाहिर सी बात है की इन फिल्मो के निशाने पर बच्चे ही होते है । हालाँकि ये प्रयोग पिछले दो- तीन सालो से भारत में भी शुरू हुआ है मगर यहाँ इसे रफ़्तार पकड़ने में अभी वक़्त लगेगा. इस हफ्ते भारतीय दर्शको के सामने है कुंग फू पांडा 2 . इस सीरीज की पहली फिल्म कुंग फू पांडा 2008 में रिलीज हुई थी। और ये काफी बड़ी हिट साबित हुई थी, एक बार फिर से कुंग फू में माहिर पांडा पॉल दर्शको का मनोरंजन करने आ गया है

कहानी
ड्रैगन वारियर के नाम से मशहूर हो चुके पांडा पो के गुरु को अभी भी नहीं लगता की वो पूरी तरह से तैयार है, पो को ये भी पता चलता है की वो आज तक जिन्हें अपना पिता समझता था वो उसके पिता है ही नहीं , बल्कि उसका असल परिवार तो चीन से है, इसी बीच खबर आती है की चीन में शैतान पीकॉक ने कब्ज़ा कर लिया है और वो कुंग फू को ख़त्म करने पर तुला है, ड्रैगन वारियर पांडा पो के गुरु उसे उसकी टीम के साथ कुंग फू को बचाने के लिए चीन भेजते है, और फिर शुरू होती है पो और पीकॉक के बीच एक बड़ी लड़ाई जो काफी कुछ "पर्सनल" भी है, और इसमे जीत अच्छाई की होती है


किरदार और फिल्म


बड़े बजट की इस अनिमेटेड फिल्म में बड़े बड़े कलाकारों ने आवाज़ भी दी है, ड्रैगन वारियर पांडा पो को जैक ब्लैक तो उसकी सबसे खास साथी टाईग्रेस को एन्जिलिना जॉली ने आवाज़ दी है, इसी टीम में शामिल मंकी की आवाज़ बने जैकी चैन तो शरारती वाइपर को आवाज़ दी लूसी लू ने. फिल्म के विलेन पीकॉक की आवाज बने गैरी ओल्डमैन ….. जब इतने बड़े नाम शामिल हो तो ज़ाहिर सी बात है की फिल्म की स्टार पावर बढ़ जाती है.. फिल्म 3डी है और कई बार तो बेहद खूबसूरत अहसास देती है, एक दृश्य में पांडा ड्रैगन्स का पीछा करता है जो 3 डी की वजह से बेहद खूबसूरत और जीवंत लगता है. खास बात ये है की फिल्म में 3 डी का बेजा इस्तेमाल कहीं नहीं हुआ है, फिल्म की सादगी और बचपने को सम्हाल कर रखा गया है, 3 डी कला को एक नया विस्तार देती है, झरने, पेड़, पहाड़, सब आपके करीब आ जाते है ऐसे में एनिमेटेड करेक्टर भी आपको कहानी में उसी तरह ले जाते है जैसे की और फिल्मो के किरदार

जब भी बच्चो को ध्यान में रख कर फिल्म बनायीं जाती है तो उसमे कोशिश की जाती है की कामेडी की शक्ल में कुछ अक्ल दी जाये और ये फार्मूला हमेशा कामयाब भी होता है, फिल्म में कई जगहे आपको बरबस हंसी आ ही जाती है, ख़ास कर पांडा पो की खाने पीने की आदते और उसके बढ़ते मोटापे से परेशान उसके साथीयो की मासूम बाते ….हालीवुड में ये फिल्म एक हिट साबित हो रही है, देखने वाली बात ये है की अच्छी फॅमिली फिल्मो का अकाल झेल रहे भारतीय दर्शको को ये फिल्म कितना पसंद आएगी

Thursday, May 19, 2011

प्यार का पंचनामा

"लव आजकल" पर आजकल तमाम फिल्मे लगातार बन रही है, किसी में स्टोरी नयी- तो किसी में कलाकार, पर ट्रीटमेंट लगभग सबका एक ही जैसा रहता है, प्यार का पंचनामा इस मामले में जुदा है, फिल्म की असल ताकत है कहानी का ट्रीटमेंट और रियल लाइफ से उसकी करीबी, हालाँकि फिल्म पारिवारिक बिलकुल भी नहीं है, पर आजकल "यूथ फोकस" फिल्मे इसी तरह बनती है और अगर उसमे कामेडी अच्छी लगी तो चलती भी है, प्यार का पंचनामा भी इसी किस्म की फिल्म है

फिल्म में दिखाया गया है की प्यार में तभी तक मज़ा है जब तक वो हो ना जाए। कुछ दिनों बाद ही लगने लगता है कि ये कहाँ फंस गए, बेवजह की उलझाने परेशान करने लगती है और आप वो नहीं रहते जो आप है. कहानी है तीन दोस्तों रजत, चौधरी और निशांत की जो महानगरो में रहने वाले और मल्टीनेशनल कंपनियो में काम करने वालो नवजवानों की तरह बेतकल्लुफ अंदाज़ में रहते है और आपस में काफी खुश भी नज़र आते है, हालाँकि तीनो की जिंदगी में लड़किया नहीं है, उन्हें इस बात का अफ़सोस भी है पर जब उनकी जिंदगी में लडकियां आती है तो उनकी जिंदगी अफ़सोस हो जाती है, शुरुवात में तो सब कुछ ठीक ही लगता है पर धीरे धीरे लड़कियां उन पर हावी हो जाती है, कभी लडकियों के ताने उनकी जिंदगी मुश्किल करती है, तो कभी दखलंदाज़ी, तो कभी बेपरवाही तो कभी मैच के बजाय शॉपिंग बैग्स उठाए घूमना पड़ता है, और फिर धीरे धीरे वो अपने आपको इस प्यार से जिसने उनकी जिंदगी को जहन्नुम बना दिया से आज़ाद कर लेते है।

वाइकॉम 18 मोशन पिक्चर्स और वाइड फ्रेम पिक्चर्स के बैनर तले बननेवाली इस फिल्म में सारे नए कलाकार है और सबने अच्छा काम किया है लेकिन सबसे ज्यादा तालियाँ बटोरी दिव्येंदु शर्मा ने जिन्होंने फिल्म में लिक्विड का किरदार निभाया है , एक बार फिर से बात फिल्म के ट्रीटमेंट की, कहानी भले ही दिल्ली की हो, पर ट्रीटमेंट इस लिहाज़ से है की आज कल का युवा वर्ग चाहे वो किसी भी महानगर से हो उससे अपने आपको जोड़ सकता है, और इसका क्रेडिट जाता है फिल्म के डायरेक्टर लव रंजन और निर्माता अभिषेक पाठक को.

हालाँकि फिल्म का म्युज़िक साधारण है, गाने कुछ खास नहीं है, और लोकेशंस ज़्यादातर दिल्ली और गोवा की है, फिल्म के खिलाफ एक बात और जो जाएगी वो इसका फैमिली फिल्म न होना, फिल्म में जगह जगह गाली गलौज और द्विअर्थी संवाद है, इसलिए शायद लोग इसे परिवार के साथ न देखने जाये. पर फिल्म की सबसे बड़ी खासियत ये है की जितने भी युवा इस फिल्म को देखने जायेंगे उन्हें कई सारे सीन अपनी जिंदगी के नज़र आयेंगे- वो भी कामेडी के अंदाज़ में, ज़ाहिर सी बात है की तकलीफे जब दूसरे की हो और उसे कामेडी के अंदाज़ में दिखाया जाये तो हंसी आ ही जाती है.

कुल मिलकर इस चिलचिलाती गर्मी में अगर आपके पास करने को कुछ खास नहीं है, आईपीएल के मैच अब आपको बोर करने लगे है, तो प्यार का पंचनामा एक बेहतर विकल्प हो सकता है