Thursday, January 28, 2010

Thursday, January 14, 2010

हाज़िरी

फिर से कई दिन गायब रहा, आज अनुराग शर्मा ने भी टोका …..विश्वास मानिए की वजह सिर्फ और सिर्फ समय की कमी थी... ऐसा नहीं है की मै कोई खास व्यस्त रहने वालो में से हूँ पर हर दिन करीब 12 घंटे ऑफिस में रहने के बाद और सिर्फ एक दिन अवकाश के कारण जिस्म और जान दोनों इजाज़त नहीं दे रहे थे की कुछ लिखा जाए. इस बार सोचा था की रोजाना की चर्चा करने के बजाय कुछ और लिखूंगा पर विषय नहीं मिल रहा था और इस कारण भी देर होने लगी. खैर आपसी बाते - मुलाकाते छूट न जाय इसलिए फिर से हाज़िर हूँ कर्मो का लेखा जोखा लेकर…..

दरअसल तारीख 7 जनवरी से हम रात्रि सेवा में चले गए और लगातार 5 रातो तक रात के कोहरे, अपराध और सुबह पेपर्स में छपने वाली खबरों के साथ धींगामुश्ती चलती रही... शिफ्ट बेहद सरलता पूर्वक ख़त्म हो गयी....इसी बीच नयी टीआरपी रेटिंग्स आई और स्टार न्यूज़ नंबर 1 चैनल बन गया. तमाम तारीफे हुई.....मुझे भी बड़ो से शाबाशी मिली.....ये क्षण काफी दिनों बाद आये इसलिए काफी खुश थे हम सब……

इसी बीच दो पुराने साथियो से बात हुई..... पहली दिल्ली आने के बाद मेरे सबसे अच्छे दोस्तों में से एक दीप्ति रावत (अब बोरा), जो मेरे साथ भारतीय विद्या भवन में जर्नलिज्म की साथी थी, भवन में हमारी अच्छी दोस्ती थी और हम ज़्यादातर एक ही टीम में रह कर काम करते थे. मेहनत के सारे काम मै किसी तरह उसी से करवा लेता था....और उस पर भी उसे एहसास दिलाता था की सब मै कर रहा हूँ.... फिलहाल वो इस वक़्त रायल ब्रिटिश आर्मी ( मतलब UK, वहां जाने वाले हर शख्स को मै यही तमगा देता हूँ) में है, भवन में भी वो काफी तेज़ स्टुडेंट्स में थी, वहां पर भी उसने रेडियो, अखबार और दुसरे माध्यमो में काम किया है, मजेदार बात ये है की जब भी हमारी बात होती है वो कुछ नया कर रही होती है- बिना पुराना काम छोड़े.....लाज़वाब.... उसकी शादी हो गयी है और वो काफी मज़े में है.....मेरी शुभकामनाये उसे.....

दूसरे है सैय्यद आलम - आलम लखनऊ यूनिवर्सिटी में Philosophy में हमारे साथ थे और खासे लफंगे थे...... मै आज तक एक से एक लफंगों और छिछोरों से मिला हूँ पर आलम भाई के आसपास भी कोई नहीं है... मै खुद भी कोई बहुत बुरा खिलाडी नहीं था पर साहस और दुस्साहस के बीच के फर्क को जिस तरह आलम ने ख़त्म किया था वो सबके बस के बात नहीं....बेहद करीबी दोस्त...गायब हो गए थे पर टीवी पर मुझे देखने के बाद कहीं से मेरे नंबर जुगाड़ लाये और वही आवाज़- " अमा क्या बे!भूल ही गए यार तुम”……. आलम फिलहाल लखनऊ में ही है और ऑटो स्पेयर्स के धंदे में है ....सही है.....उसे भी ज़िन्दगी मुबारक

रात की शिफ्ट ख़त्म होने के बाद शाहिद कपूर और जेनेलिया डिसूज़ा की आने वाली फिल्म चांस पर डांस के प्रमोशन को कवर करने गया... मै तो उन दोनों को सस्ते में ही निपटाना चाहता था मगर लगभग हर चैनल को 5 मिनट देने वाले शाहिद और जेनेलिया डट गए की हमें आधा घंटा देंगे, मै भी परेशां की मियां इतनी देर तक आपसे क्या बाते करूँगा, सारी कंट्रोवर्सी तो मै 5 मिनट में ही निपटा दूंगा फिर बाकी का वक़्त क्या करेंगे,,.. वैसे भी मै सिर्फ वही सवाल करता हूँ जो चैनल पर चले... खैर दोनों के इंटरव्यू किये और तीन स्टोरीज़ बन भी गयी... और चली भी..... मेरी बल्ले बल्ले. ज़ाहिर सी बात है एक स्टोरी शाहिद और करीना के टकराव की थी. ....शाम को बड़े भाई पंकज झा साहब का मैसेज आया की दिलज़लो की दुखती राग पर हाथ मत रखो- शायद उन्होंने भी खबर चलते देखी-- मैंने भी ज़वाब में एक उपहास भरा मैसेज डाला. ....टीवी देख रहा दीपांशु तुरंत बोल पड़ा की "यार तुम काफी मोटे हो गए हो"...मुझे भी पता है, पर वो बिना कहे या कहूँ की ताना मारे कहा रहने वाला था.... स्टोरी चलने के वक़्त शालिनी शुक्ला का भी मैसेज आया.....हम स्टार न्यूज़ में साथ आये थे.....मैंने सीधा उसी से पूछा की क्या मै काफी मोटा हो गया हूँ.....उसने डिप्लोमेटिक जवाब दिया....मुझे अच्छा लगा...कोई सीधे सीधे मेरी बुराई कर दे...मुझे कभी अच्छा नहीं लगता......मुझे क्या किसी को अच्छा नहीं लगता....बस कोई कह देता है...कोई नहीं कह पाता……….

कल का दिन प्रीती जिंटा के नाम रहा......सुबह वो एक के NGO लिए विधवा मदद के लिए काम करती नज़र आई तो शाम को चेरी ब्लेयर के साथ लोहड़ी मनाती...उनकी उदासी पर मैंने अपने फेसबुक पर लिखा जो कुछ साथियो को नागवार गुज़री…. श्रुति और रानिता मेरे नज़रिए के खिलाफ थे तो वहीँ दिव्या दीपांशु और नीरज को मेरी बात सही लगी …….सबसे अलायदा टिप्पड़ी तो शुची बाजपाई की थी की मै कालेज के ज़माने से अड़ियल हूँ,..मुझे तो नहीं लगता पर हो भी सकता है...खैर मुझे वाकई प्रीती जिंटा काफी उदास और डरी सहमी लगी …..

मकर संक्रांति होने के कारण पापियो का पापी और मेरा रूम मेट दीपांशु गर्ग आज सुबह गंगा स्नान पर हरिद्वार गया है...मुझसे भी पूछा था पर त्योहारों के दिन मै मंदिर नहीं जाता.....गीजर में मेरे हिस्से के गरम पानी का इस्तेमाल करके उसने सुबह की शुरुवात भी पाप से की....मजबूरन मेरे हिस्से ठंडा पानी आया....आफिस में आते ही सुबह की सर्दी पर रिपोर्टिंग और फिर सब रोज का काम.....फिलहाल आज तक यही......इसी बीच कुछ और याद आया तो ज़रूर बताऊंगा........

एक खबर- मेरा ब्लॉग पढने वाले पाठको की संख्या आज सुबह तक 67 हो गयी है, भारत से 59, अमेरिका से 5 और इंग्लैंड, कनाडा और सउदी से 1. आप सभी को धन्यवाद और शुभकामनाय

Wednesday, January 6, 2010

Aaal iz Well

जनवरी 4- यानी मेरा जन्मदिन...... मैंने अपने फेसबुक पर भी यही बात डाली है की इस साल भी मुझे उन सभी लोगो की शुभकामनाये आई जिन्होंने पिछले साल भी विश किया था. कई लोग बढ़ भी गए...यानी मैंने एक भी दोस्त नहीं खोया है और यही सबसे अच्छा गिफ्ट था….दरअसल मै थोडा सा चिडचिडा और जल्दी ही आपा खोने वालो में से हूँ……नुक्सान उठाने के लिए हर वक़्त तैयार...ऐसे में अगर सारे दोस्त साथ बने रहे तो किस्मत के साथ साथ उन सभी को भी श्रेय जाता है...आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया

Sunday, January 3, 2010

साल की अनूठी शुरुवात

दो दिन तक गायब होने का गुनाहगार हो गया मै, आज दोस्तों के फोन आये की क्या मियां - दो दिनों में ही भूत उतर गया, इसलिए अब इतनी रात में आ बैठा हूँ,..वैसे भी मुझमे कोई विलक्षण पांडित्य तो है नहीं- जिसके दर्शन मै आपको करवा सकूँ. मै तो बस "कहाँ था, क्या कर रहा था, किससे मिला" जैसी बाते ही करता हूँ...हाँ, अगर कभी ज्यादा गर्मी लगी तो भाषाई चमत्कार ( 3 idiots के सन्दर्भ में) भी कर सकता हूँ .....

शुरुवात करते है 31 दिसंबर की शाम से जब दो शातिर दीपांशु और अरुणोदय के संगत में मै फंस गया, कबाब पराठे से लेकर बिरयानी तक वो सारे गुनाह किये जो पेट और जिस्म के दुश्मन है, खैर ये दुश्मनी आगे भी कायम रही. साथी बदलते गए- बढ़ते गए- दुश्मनी भी चलती गयी. सुबह घर पहुँचते पहुँचते 4 बज गए. बीच का ब्यौरा मै जानबूझ कर हज़म कर रहा हूँ, उसके बाद जो सोये तो दोपहर 12 बजे उठे .

बचपन में मम्मी ने सिखाया था की नए साल के पहले दिन की शुरुवात बड़ो के आशीर्वाद से और एक दुसरे को बधाई दे कर करते है, स्कूल में भी बदस्तूर ये सिलसिला जारी रहा. मगर शायद ये पहली बार हुआ की न किसी को फोन किया न ही एसएम्एस. हाँ जिनके बधाई सन्देश आये उन्हें ज़वाब ज़रूर दिया- और ये सुनिश्चित किया की वो सिर्फ एक फारवर्ड मैसेज न हो.

लगता है की बीती शाम के कबाब से दीपांशु का दिल नहीं भरा था तो उन्होंने फिर लंच में कबाब पराठो की ख्वाहिश जाहिर की. न करना तो मैंने सीखा ही नहीं है तो मै भी तैयार हो गया. इससे बीच करीब दो बजे आहूजा सर का फोन आया की आमिर- चेतन भगत विवाद में फिल्म के डायरेक्टर राजू हिरानी की प्रतिक्रिया लेनी है इसलिए तुम नोयडा में होटल रेडिसन निकल जाओ. दीपांशु को अट्टा जाना था तो वो भी साथ हो गए. खैर फिल्म की पूरी टीम के साथ मुलाकात तो हुई मगर राजू हिरानी ने बेहद सम्मान देते हुए कहा की उन्होंने सुबह से ब्रश भी नहीं किया (उन्हें देख कर लग भी रहा था) इसलिए वो अभी बाईट नहीं दे सकते- मै प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उनसे मिल लूँ- वो इंटरव्यू दे देंगे. हमने बहुत कोशिशे की पर कामयाब नहीं हो पाए. कोशिशो की कोई कीमत नहीं होती- परिणाम न देने के कारण मेरे प्रयास शून्य साबित हुए.......

नाकाम आशिक की तरह हम बोझिल कदमो से पीसी के लिए गए लेकिन वहां का माहोल तो अद्भुत था. आम जनता को पता चल गया था की आमिर मॉल आये है. सैकड़ो अति उत्साहित लोग सीढियो एक्सलेटर पर कब्ज़ा जमाये हुए थे.....गालियाँ देते और खाते किसी तरह जब हम आगे पहुंचे तो एक "फुंके हुए बुड्ढे" से माफ़ कीजेयेगा एक बुजुर्गवार से उलझ गए. उनका कहना था की "तुम मीडिया से हो और इसलिए कहीं भी जा सकते हो , ये क्या बात हुई" वो शायद किसी अच्छे पद से रिटायर हुए होंगे- अंग्रेजी पर उनकी पकड़ कमाल की थी. कोई और वक़्त होता तो मै ज़रूर बहस करता मगर पिछले लक्ष्य की नाकामी ने आगे के काम को कायदे से करने के लिए प्रेरित किया था इसलिए मै बिना बहस के आगे जाने लगा. झंडू पंचारिष्ट की सेवन से उर्जा लिए हुए बुजुर्ग ने फिर मुझे ललकारा, मैंने लखनवी तहजीब का ख्याल करते हुए फिर अनसुना करने का नाटक किया. तीसरी बार फिर उसके मुझे ललकारने पर मैंने शालीनता से कहा की " i am not here for fun, its my job" उसने फिर मीडिया कर्मियो को लेकर बाते कही जो साधारण मौको पर मुझे नागवार गुजरती पर मै चुपचाप सुन लिया...हाँ इस पूरे प्रकरण में आसपास जमा भीड़ ने काफी आनंद लिया- उनकी नज़र में तो मै ही खलनायक था क्यूंकि मै सरलता से अन्दर जा सकता है, खैर ये वहम भी टूट गया और सिक्योरिटी वालो ने अन्दर आने से मना कर दिया. काफी देर तक बहसबाजी के बाद अन्दर घुसने को नहीं मिला. बुजुर्गवार फिर तफरीह लेने वाले अंदाज़ में बोले अगर हमें अन्दर नहीं जाने दोगे तो इन्हें भी रोको.मेरे काम में दखल के पर्याप्त कारण हो चुके थे...इसी बीच आमिर वहां से गुज़रे, साफ़ था की वो पहुँच गए थे और हम नहीं. मै तो वैसे भी जल्दी ही आपा खोता हूँ. इस बार मैंने सिर्फ उसे घुरा. शायद उसे लगा की मै या तो काफी सीधा हूँ या काफी बेपरवाह- उसने फिर कहा हम नहीं जाने देंगे. अब मै अपनी रंग में आ चुका था- मैंने उससे कहा की " भो..... के एक लफ्ज़ भी आगे बोला तो कैमरा .....से डाल कर ...... से निकाल दूंगा. तेरी ........ को ........ , ... और तमाम ...........इसमें मेरी योग्यता को बचपन से ही काफी सम्मान मिला है- और गालियो की इस गरिमा ने असर भी दिखाया, कुछ हटे- कुछ दूर गए... इतनी देर में पीआर दिखी और उसने अन्दर आने का इंतज़ाम किया....प्रेस कांफ्रेंस में विधु विनोद चोपड़ा की बेवकूफी ने चैनल को सबसे आकर्षक खबर दी. तीन पत्रकार और उनकी यूनिट होने के कारण हमने इस खबर में तमाम साथी चैनलों को पीछे छोड़ दिया. और एक सर्वव्याप्त खबर "स्टार खबर" में बदल गयी. विधु विवाद सबको पता है इसलिए उस पर चर्चा का कोई मतलब नहीं है. उसके बाद लौटने के बाद जो तारीफ (?) मिली वो अद्भुत और अउल्लेखनीय है. पता नहीं अउल्लेखनीय कोई शब्द है भी या नहीं.

खैर रात 10 बजे वापस घर. और दीपांशु गर्ग के साथ तमाम हस्तियो के वस्त्रहरण का दौर शुरू हो गया. ये एक ऐसा कार्यक्रम है जिसे हम दोनों काफी दिल लगा कर करते है. अफवाहों और खबरों से जुडी हर सामग्री इसमें होती है. पक्ष- विपक्ष और हमारा पक्ष. इसमें बॉसेस की बुराई, साथियो की खिचाई, और कुछ हो न हो लडकियो की बाते ज़रूर होती है. दीपांशु गर्ग के पास इन मामलो की खबर अक्सर मुझसे पहले और ज्यादा सटीक होती है

दो जनवरी फायदे नुकसान की रही. मेरा जन्मदिन आने वाला है-उसके दो गिफ्ट समय से पहले ही मिल गए...जो बहुत अच्छे थे- उनके बारे में विस्तार से अगले पोस्ट में...नुकसान ऐसा की मै आज पूरे दिन खाना नहीं खा पाया, कभी मौका नहीं मिला तो कभी मन नहीं किया. तान्या दवे ने मेरे सहित कई लोगो को केक खाने के लिए बुलाया था पर बुलेटिन की वजह से वहां नहीं जा पाया. बाद में तान्या ने तफरीह भी ली की केक काफी शानदार था. बुलेटिन आज के काफी अच्छे रहे, नोयडा एनकाउंटर से लेकर फरार आतंकियो तक. देर रात उत्तरी ग्रिड में बिजली सप्लाई और कोहरे की खबर भी चढ़ गयी... कुल मिलकर एक व्यस्त दिन......

तो ये था पिछले दो दिनों का लेखा जोखा- आशा ही नहीं बल्कि पूरी उम्मीद है की धीरे धीरे मेरे पाठक कम हो जायेंगे क्यूंकि किसी को भी दिलचस्पी नहीं होगी की मैंने क्या क्या किया...पर मै फिर भी यही सब लिखूंगा क्यूंकि ये सब मेरे अपने लिए है.......................कितना स्वार्थी हूँ मै