Saturday, September 24, 2011

Film Review: 'Mausam'

हिंदी सिनेमा में बहुत दिनों से किसी खालिस रोमांटिक फिल्म की कमी महसूस की जा रही थी। जब मौसम के प्रोमोज आये तो हर किसी को ये लगा की ये वो फिल्म है जो मोहब्बत के नए मायने सामने लाएगी। फिल्म का प्रमोशन भी कुछ इसी अंदाज़ में हुआ । फिल्म है भी रोमांटिक, मगर अफ़सोस की मौसम काफी कुछ उस तरह की है जिसमे एक लेखक कहानी तो लिख तो देता है पर वो ये नहीं तय कर पाता की इसमें से क्या रखू या क्या हटा दूँ. ? फिल्म में फ्लो का अभाव इस कदर नजर आता है की जैसे ही आप फिल्म को पसंद करने लगते है, आपके मुह पर 10 मिनट की बोरियत का तमाचा पड़ जाता है । पहला हाफ तो फिर भी हंसी मजाक में कट जाता है, लेकिन इंटरवल के बाद तो कई बार मन में ये सवाल उठता है की आखिर ये सीन फिल्म में क्यूँ है ? दरअसल अगर डायरेक्टर खुद अपनी ही फिल्म पर फ़िदा हो जाए तो फिल्म के लिए मुश्किल हो जाती है, और यही बात फिल्म के लिए सबसे खतरनाक साबित हुई।

कहानी -
मौसम की कहानी को उम्र के अलग अलग दौर और उस वक़्त की घटनाओं के मेल से बुना गया है। फिल्म के पहले मौसम में पंजाब के गांव में रहने वाले वाले हैरी (शाहिद) और कश्मीरी से विस्थापित हुई आयत (सोनम) का एक-दूसरे को पसंद किया जाना दिखाया गया है। दोनों फिल्म में कई बार मिलते है, बिछड़ते है । फिल्म में विलेन हालात है जो कभी कश्मीरी आतंकवाद के रूप में तो कभी अयोध्या कार सेवा के रूप में तो कभी बाम्बे ब्लास्ट के रूप में और गुजरात दंगो के रूप में सामने आता है। यकीन मानिये की जब तक कहानी पंजाब में रहती है फिल्म में कशिश रहती है। लडकपन का रोमांस देखना वाकई मज़ेदार लगता है, पर ज्यों ज्यों कहानी आगे बढती है, उसे हज़म करना मुश्किल हो जाता है ।

अभिनय
शाहिद और सोनम दोनों आज के ज़माने के स्टार है। दोनों ने अपना काम अच्छा भी किया है, मगर अलग अलग। रोमांटिक फिल्मो के लिए बहुत ज़रूरी होता है की लड़का और लड़की में केमेस्ट्री दिखे जो अफ़सोस इस फिल्म में नदारद है । एअर फोर्स में शामिल होने के पहले के द्रश्यो में शाहिद कपूर खासे जमे है। सोनम कपूर अपने रोल के मुताबिक फिल्म में मासू‍मियत और खूबसूरती को समेटे हुए है। मगर दोनों साथ साथ उस कदर के ज़ज्बात को सामने नहीं ला पाए जिसका दावा ये फिल्म कर रही थी । जहाँ तक दुसरे कलाकारों की बात करे तो सुप्रिया पाठक बेहतरीन कलाकार है और बुआ के रूप में उन्होंने उम्दा काम किया है, अनुपम खेर भी दिखते है पर यहाँ अदिति शर्मा (रज्जो ) का जिक्र करना ज़रूरी है जो तमाम बड़े कलाकारों के बीच ध्यान खीचने में कामयाब रही है।

म्युज़िक और सिनेमैटोग्राफी
फिल्म म्यूजिकल हिट है। चाहे वो 'रब्बा मैं तो मर गया ओए' हो या फिर "सज धज कर" । इसके अलावा "जब जब चाहा तूने" गाना भी शानदार है. फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष फिल्म का म्युज़िक ही है जो वाकई काबिले तारीफ़ है। इसके अलावा फिल्म के सिनेमैटोग्राफर विनोद प्रधान का काम भी बेहद शानदार है, उनके हर शॉट में खूबसूरती है। रही बात डायलॉग की तो उनमे कुछ खास नहीं है.

आखिरी बात-
तो लाख टके की बात ये है कि माना कि पंकज कपूर बेहद शानदार एक्टर है, ये भी माना कि शाहिद और सोनम सुपर स्टार है, ये भी माना कि रोमांटिक फिल्म का मैदान खाली है और ये भी माना कि फिल्म म्यूजिकल हिट है. मगर अफ़सोस ये सारी बाते फिल्म को अच्छी नहीं बनाते। फिल्म सुस्त है और गैर ज़रूरी द्रश्यो से भरी पड़ी है. तकलीफ तो इस बात की है की गलती बेहद काबिल पंकज कपूर के हाथो हुई. मौसम को 5 में से 2 अंक मिलते है

Friday, September 23, 2011

Film Review – Speedy Singh

खेलो को ध्यान में रखकर कई सारी फिल्मे बनी है, जिसमे कुछ कामयाब भी हुई है, खास बात ये है की ज़रूरी नहीं है की फिल्म कामयाब तभी होगी जब वो क्रिकेट पर होगी. चक दे खेलो पर बनी सबसे कामयाब फिल्म मानी जाती है जो हॉकी पर बनी थी. अक्षय कुमार की बतौर निर्माता फिल्म स्पीडी सिंह में भी हॉकी है मगर ये हॉकी आइस हॉकी है। "आइस हॉकी" भारतीय दर्शको के लिए एक नयी चीज़ है


कहानी कुछ यूँ है की टोरंटो में बसे भारतीय परिवार के युवक राजवीर की इच्छा है कि वह कनाडा का सबसे मशहूर खेल आइस हाकी खेले पर उसकी राह में सबसे बड़ी बाधा उसके पिता है। एक सिक्ख परिवार में पले-बढ़े राजवीर के पिता चाहते हैं कि वह अपने धर्म और अपने फैमिली बिज़नैस पर ध्यान दे। राजबीर के पिता जब नहीं मानते तो वह पिता से छिपकर एक कोच ढूंढता है, आइस हॉकी टीम बनाता है। उसके बाद अपने अंकल की ट्रक कंपनी को प्रायोजक बनाता है। टीम का नाम होता है “स्पीडी सिंह”. फिल्म में कुछ ट्विस्ट भी है, मसलन कनाडा की हाकी टीम में शामिल होने के लिए जरूरी है कि वह बाल कटवा ले और पगड़ी न पहने। ऐसे में राजवीर कैसे अपनी टीम को राज़ी करता है और फिर क्या वो कामयाब होते है, इस बयान की कहानी स्पीडी सिंह। इस फिल्म में अक्षय कुमार एक खास भूमिका में हैं।


कहानी एक लाइन की है और कुछ खास भी नहीं है, हम ऐसी कहानी पर बनी तमाम फिल्मे देख चुके है, दरअसल खेलो पर बनी फिल्मो में कहानी से ज्यादा ट्रीटमेंट मायने रखता है मसलन साधा हुआ स्क्रीनप्ले और दमदार डायलॉग. याद कीजिये जब चक दे में शाहरुख़ कहते है की "हर टीम में सिर्फ एक ही गुंडा होता है, और इस टीम का गुंडा मै हूँ" . स्पीडी सिंह ट्रीटमेंट के लिहाज़ से फिल्म बड़े ही पुराने ढर्रे पर चलती है. फिल्म के असल प्रोडूसर टोरंटो के बिजनेसमैन अजय विरमानी है और फिल्म के हीरो उनके बेटे विनय विरमानी. जाहिराना तौर पर फिल्म NRI कल्चर में रची बसी है, इसलिए इसमें चक दे जैसे ट्रीटमेंट की उम्मीद करना भी बेमानी होगा.


अब बात अगर एक्टिंग की करे तो फिल्म के हीरो विनय विरमानी इठलाते शरमाते अपना काम कर गए है, फिल्म की नायिका कैमिला बैले है जिनके पास करने के लिए कुछ खास नहीं था, हाँ कोच की भूमिका में अमेरिकन एक्टर रॉब लू ज़रूर जमे है. अनुपम खेर परेशान पिता की भूमिका कई बार कर चुके है. और हाँ स्पीडी सिंह' में अक्षय कुमार भी अतिथि भूमिका में ज्ञान देते नज़र आएंगे।


फिल्म की USP इसका म्युज़िक है, जिसे दिया है संदीप चोटा ने. सारे गाने पंजाबी है और चार्ट बस्टर्स में छाए हुए है . खासकर शेरा दी कौम काफी चर्चा में है.


दरअसल NRI परिवेश में बनी NRI फिल्म स्पीडी सिंह जिसमे बॉलीवुड के सारे मसाले है भले ही भारतीय दर्शको को ज्यादा न भाए मगर विदेशों में बसे भारतीयों में ये ज़रूर हिट साबित होगी . हम इसे 5 में से 2 अंक देते है

Saturday, September 3, 2011

Film Review – Body Guard

सही कहते है की कामयाबी पाना ज्यादा मुश्किल नहीं है, पर उसे बरकरार रखना ज्यादा बड़ी चुनौती है। विश्वास न हो तो धोनी से पूछ लीजिये। सलमान खान के लिए भी अब वक़्त आ गया है की वो इस बात को समझ जाए । दर्शकों का प्यार पाना मुश्किल नहीं पर उसे संभालना हर किसी के बस की बात नहीं। बेशक सलमान खान की आम जनता में गहरी पकड़ है। ये वो लोग है जो जानते है की सलमान की एक्टिंग में कुछ ख़ास नहीं है, अगर सलमान को कुछ स्पेशल बनाता है तो वो उनका स्टाइल है। चाहे वो वांटेड हो या दबंग या रेडी, किसी भी फिल्म में सलमान खान की एक्टिंग की नहीं बल्कि उनके अंदाज़ की तारीफ़ हुई है, लेकिन सलमान को भी अपने "लॉयल दर्शकों" के बारे में सोचना पड़ेगा वरना भेडचाल के चलते उनकी फिल्म को बड़ी ओपनिंग तो मिल जाएगी पर उसके बाद मुश्किल आएगी, और इसी तरह चलता रहा तो कुछ वक़्त बाद बम्पर ओपनिंग भी मुश्किल हो जायेगी।

बॉडीगार्ड में सलमान फिर से "मेरा ही जलवा" के तर्ज़ पर है, लेकिन अगर बात फिल्म की कहानी की करे तो उसमे जरा भी दम नहीं है। कहा तो ये गया था की फिल्म इंटरटेनमेंट के सारे मसाले है लेकिन हकीकत ये है की फिल्म में ने तो मजेदार कॉमेडी है, न असरदार रोमांस, रही बात USP एक्शन की तो वो भी बेवजह का लगता है । कहानी कुछ यूँ है की बॉडीगार्ड लवली सिंह (खान) को एक रईस और इज्ज़तदार ठाकुर सरताज राणा (बब्बर) की बेटी दिव्या (करीना) की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी मिलती है। बॉडीगार्ड होने तक तो ठीक था पर एक दिन दिव्या को उससे प्यार हो जाता है। अब बॉडीगार्ड तो बॉडीगार्ड, वो प्यार कैसे कर सकता है, ख़ास बात ये है की उस बेचारे को पता भी नहीं है की वो जिसका बॉडीगार्ड है वही उससे प्यार करती है. तमाम बेवजह के मोड़ो के बाद बॉडीगार्ड और दिव्या के प्यार को मंजिल मिलती है । कहानी भी ढीली है और इस बार सलमान के डायलोग भी उतना असर नहीं डालते, हाँ एक बात है की जहां भी मौका मिला है, सलमान बॉडी दिखाने से नहीं चूंके है। करीना कपूर अपने देसी लुक में खुबसूरत लगी हैं, बाकियों की बात न ही करे तो अच्छा है।

हाँ फिल्म का म्युज़िक अच्छा है, लंबे अर्से बाद हिमेश रेशमिया एक ज़माने के अपने आका सलमान की फिल्म में वापस आये है और हिमेश ने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया। यहाँ पर फिल्म के एक गाने "तेरी मेरी प्रेम कहानिया" का ज़िक्र ज़रूर करना होगा जो सुनने और देखने दोनों में बेहतरीन है.

सौ लफ्जों की एक बात की सलमान की हवा क्या आंधी चल रही है, ऐसे में ये फिल्म न केवल चल ही जाएगी बल्कि पैसे भी खूब कमाएगी लेकिन वक़्त आ गया है की सलमान को ये सोचना चाहिए की हमेशा ये दौर नहीं रहेगा.

आखिर में एक बात कि " सलमान भाई मुझ पर एक अहसान ज़रूर करना कि दुबारा बॉडीगार्ड जैसे एहसान मत करना"