Monday, July 19, 2010

ख़बरें

पिछला कुछ वक़्त सिर्फ खबरों का था, यहाँ पर खबरों का मतलब चैनल पर चलने वाला समाचार नहीं बल्कि निजी जिंदगी की उठापठक है ......बहुत दिनों से सोच रहा था की कुछ लिखू पर लिखने लायक कुछ मिला ही नहीं, इसलिए फिर से वही अपना पुराना हिसाब- कहाँ था, कैसा था, क्या क्या हुआ......पिछली पोस्ट थी 24 मई को और आज है 19 जुलाई, लगभग दो महीने हो गए बातों और मुलाकातों के बिना , चलिए थोडा बतिया लिया जाए ......

1. शुरुवात एक शुभ समाचार से, भाई मेरे रूम मेट और अजीज़ दोस्त दीपांशु गर्ग ने शानदार I-20 White Color ले ली है, बेहद खूबसूरत और उम्दा, बोले तो एकदम मस्त... कल दोपहर बो ले कर आये, मै उनके साथ नहीं जा पाया क्यूंकि मुझे भारतीय विद्या भवन जाना था, पर लौटने के बाद हम अपने करीबी दोस्तों को दिखाने ले गए, सबने बड़ी तारीफ़ की, आज वो कार ऑफिस ले गया है ...मिठाई स्वीट पैलेस से खरीद रहा था पर मैंने जब लानते भेजी तो फिर हल्दीराम गया, वैसे कल हम गए थे भारतीय विद्या भवन - मेरा जर्नलिज्म स्कूल जहाँ से मैंने पत्रकारिता सीखी, दरअसल वहां कन्वोकेशन प्रोग्राम था और कुछ पुरने छात्रो को उनकी मीडिया उपलब्धि के लिए सम्मानित भी किया जाना था, मुझे पता नहीं की मेरा चयन किस योग्यता के आधार पर इस सम्मान के लिए हुआ पर मै बेहद शुक्रगुज़ार हूँ उन सभी का जिन्होंने मुझे इस काबिल समझा, इससे भी ज्यादा ख़ुशी की बात ये रही की दोस्त और भाई अरुण तोमर और नितिन भट्टाचार्य से मुलाकात हो गयी, दोनों बेहद करीबी दोस्त है, लेकिन सारे सम्बन्ध फोन पर ही सीमित थे, कल मुलाकात हुई और कालेज के दिन जिंदा हो गए... मै खुश हूँ :)....

3. इससे आगे बिदाई की बात - एक महीने के भीतर दो अमूल्य साथी डेस्क पर साथ छोड़ गए. समन्विता घोष और अमित भेलारी.
· पहले बात समन्विता घोष की जिन्होंने स्टार न्यूज़ से त्यागपत्र देकर सेल ज्वाइन किया जिसके लिए उन्हें हार्दिक बधाई. पर उनकी कमी खलती है, कुछ एक अवसरों पर तल्ख़ मौके भी आये पर ज़्यादातर हमारे सम्बन्ध अच्छे रहे और कभी कभी तो बेहद मजेदार भी, 4 साल हमने साथ में काम किया और एक परिवार की तरह रहे, समन्विता भी काफी भावुक किस्म की है, पर जो बात हम्मे सबसे ज्यादा मिलती है वो है हमारा "खाने" का शौक़ीन होना. मुगलई से लेकर चाइनीज़ तक, इटैलियन से लेकर सी फ़ूड तक और सड़क पर मिलने वाले छोले भठूरे से लेकर पराठो तक हम नियमित तौर पर हर जगह मुहं मारते थे और उस पर तुर्रा ये की वज़न कैसे कम करे इस पर भी एक क्वालिटी डिस्कशन रोज़ होता था, फिल्मो के बारे में भी हम काफी सारे नोट्स शेयर करते थे, खैर वो हमारे डेस्क से विदा हुई है- हमारे दिल से नहीं. उनकी कमी अखरती है पर वो एक बेहतर जिंदगी में है ये सोच कर सुकून भी मिलता है
· जाने वाले दुसरे सज्जन अमित भेलारी है, अमित ने पटना में इन्डियन एक्सप्रेस ज्वाइन किया है, अमित के साथ भी बड़ा मज़ा आया, दरअसल एक साथ मिलकर बाकि बचो को गाली देने का जो आनंद है उसका वर्णन मुश्किल है इसे केवल समझा जा सकता है, ये काम हमने साथ में खूब किया है, जमकर मस्ती की, अमित मेरे हेयर स्टाइल्स पर अक्सर टिप्पड़ी किया करता था, और मै उस पर उसकी तफरीह लिया करता था, अमित में भी अद्भुत प्रतिभा है, और अफ़सोस की हम उसका पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाए, पर मुझे इस बात की ख़ुशी है की वो आज एक मनमाफिक जॉब में है और ख़ास बात ये है की अपने घर में है …., समन्विता और अमित के बारे में कितना भी लिखूं, कम है .....दोनों के साथ एक लम्बा सफ़र तय किया है और अब दोनों की कमी खलती है
· दोनों की बिदाई पार्टी भी शानदार रही, दरअसल हमारे पास अरुणोदय प्रकाश का घर एक ऐसा अड्डा है जो इस तरह की पार्टियो के लिए एक मुफीद जगह है, अमित भेलारी की फेयरवेल पार्टी वहीं हुई जहाँ हमारी पूरी टीम मौजूद थे, सिद्धार्थ और उत्पल सर नहीं आ पायें क्यूंकि दोनों आउट ऑफ़ स्टेशन थे. वहीं समन्विता की पार्टी उनके घर पर हुई जिसमे जिसमे गुप्ता दंपत्ति, अनुराग भाई, उदिता, प्रवीण, दीपांशु , सिद्धार्थ, थे... दोनों बेहद मजेदार पार्टियां रही ....जाते वक़्त दोनों के आंसू आ गए , हो भी क्यूँ न, एक लम्बा साथ जिसमे हर क्षण संघह्र्ष का हो उसमे हम किसी किसी जगह से आये अनजान अजनबी ही एक दुसरे का सहारा थे……” दोनों खुश रहे- आबाद रहे, दिल्ली रहे या इलाहाबाद रहे” (सौजन्य चारबाग रेलवे स्टेशन पर बिकने वाला साहित्य)

4. अब एक दर्द पर भी आ जाइये, क्या है की बड़े दिनों के बाद एप्रेज़ल हुआ जिसके बारे में जितनी बात की जाए कम है, लेकिन सबसे ज्यादा तकलीफ तो पीपली लाइव का गाना "सैयां तो खूब ही कमात है- महंगाई डायन खाए जात है" सुनकर होती है, पता नहीं किसका सैयां साला खूब कमा रहा है क्यूंकि यहाँ तो मामला ठन ठन गोपाल है...चूँकि एप्रेज़ल एक ऑफिसियल विषय है जिसके बारे में सार्वजनिक मंच पर चर्चा करना उचित नहीं है इसलिए इस बारे में कुछ ज्यादा कुछ नहीं लिखूंगा

5. पिछले एक महीने में शूट पर सोनम कपूर, इमरान खान, आमिर खान और ऐश्वर्या राय से मुलाकात हुई, एश्वर्या कमाल की खूबसूरत है, मै उनसे तीन दिन में दो बार मिला , दुसरी मुलाकात में जब मैंने उनसे अपने पहले के सवाल का ज़िक्र किया तो उन्होंने तुरंत कहा की "आपने उस दिन ब्लू शर्ट पहनी थी न" , ये सच था - मै तो जी फ़िदा ही हो गया, इंटरव्यू ख़त्म होने के बाद उन्होंने वहीं खड़ी इण्डिया टीवी की रिपोर्टर नुपुर मिश्रा के हेयर स्टाइल की तारीफ़ भी काफी खुल कर की.....इन दोनों बातो को बताने का मेरा मकसद ये है की ऐश्वर्या बेहद मिलनसार है, और उनकी याददाश्त भी दुरुश्त है , इससे पहले मुझे भी लगता था की वो प्लास्टिक है पर ऐसा नहीं था

6. कुछ फिल्मे भी देखी जिसमे पसंद किये जाने लायक "राजनीति" और "प्रिंस ऑफ पर्शिया" थी, "नाईट एंड डे" औसत थी तो "आई हेट लव स्टोरीज़" , "रावण" और "ए टीम" बकवास, रावण से मुझे बड़ी उम्मीदे थी लेकिन वो चूर चूर हो गयी, फिल्म में सिनेमैटोग्राफी, बैकग्राउंड म्युज़िक, और विक्रम के अलावा ज़्यादातर चीज़े बेअसर थी. मुझे सबसे ज्यादा निराश अभिषेक ने किया, संवाद अदायगी उनके लिए इस फिल्म में सबसे मुश्किल काम था, खैर फिल्म के नतीजे उसके बारे में पूरी कहानी बयान करते है.

7. इस बीच कई खबरे आयीं, धोनी की शादी , पंजाब हरियाणा में बाढ़, महंगाई की मार, कुर्ला का किलर, मीडिया पर हमला और ऐसी ही तमाम खबरे पर जिस खबर ने सबसे ज्यादा मुझे प्रभावित किया वो थी भारत पाकिस्तान वार्ता, मुझे इस वार्ता से कोई उम्मीद नहीं थी, दरअसल मै पाकिस्तान से बातचीत के हक में ही नहीं हूँ, दो पडोसी बिना बातचीत के भी रह सकते है, मै पिछले चार साल से एक ही फ़्लैट में हूँ और मेरे फ़्लैट के सामने दो फ़्लैट और बगल में एक फ़्लैट है, मुझे वाकई नहीं पता की किसमे कौन रहता है, कितने लोग रहते है, चार साल हो गए किसी से कोई खास बातचीत भी नहीं हुई- और लड़ाई भी नहीं हुई..एक दो बार मेरे फ़्लैट के बाहर पड़े पेपर को उठाने की या यूँ कहे चुराने की कोशिश हुई तो हवाई फायर (ऐसे ही गाली गलौज) करके माहौल बना लिया, दुबारा नहीं हुआ, आप यहाँ ये कह सकते है की देश फ़्लैट नहीं है, आप ये भी कह सकते है की अगर कोई आपको परेशान करे, घर के बाहर कूड़ा फेंके तो आप क्या करेंगे, मुझे लगता है की सबसे पहले अपने घर को दुरुस्त रखिये (सुरक्षित), शुरुवात से ही अपनी छवि थोड़ी सख्त मतलब रिज़र्व रखे, पहले ही हमले पर दो कदम बढ़ कर ज़वाब दे (साफ्ट स्टेट की छवि को लात मारना ही होगा), आसपास या बाहर के लोगो से भी थोडा कम मिले जुले ताकि आप लोगो के लिए एक पहेली बने रहे (चीन ऐसा ही करता है) और सबसे ज़रूरी बात छोटे मोटे बलिदान देने के लिए हमेशा तैयार रहे .................................खैर फिर से लौटते है वार्ता पर जिसमे विदेश मंत्रियों की बातचीत के बाद दोनों देशों के बीच परस्पर भरोसे की खाई और चौड़ी हुई है क्योंकि स्टार संवाददाता दीपक चौरसिया के सवाल पर पाकिस्तान ने आतंकवादी हाफिज सईद की तुलना भारतीय गृह सचिव से कर दी। सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित करने वाला रवैया था पाकिस्तान के विदेशमंत्री " शाह महमूद कुरैशी" की, मुझे वो बेहद अपरिपक्व, कूटनीति से कोसो दूर और बनावटी किस्म के व्यक्ति लगे, उनके बोलने का अंदाज़ सब्र का इम्तेहान लेने वाला था, मुझे वो काफी कुछ उस व्यक्ति की तरह लगे जो अपनी कुंठाए ट्रेन के टॉयलेट्स में फब्तियां लिख कर निकालता है. उन्हें वाकई में कूटनीति की कक्षाए लेने की ज़रूरत है. एक असफल देश से साथ की गयी बातचीत की कोशिश फिर से असफल हो गयी……

फिलहाल तो दिमाग में इतनी ही बाते आ रहीं है जिन्हें आपसे बाँट सकूँ .....तो अभी के लिए इजाज़त दीजिये, फिर आऊंगा- बैठेंगे, बातें करेंगे

अपना ख्याल रखियेगा

2 comments:

  1. ravi, well thanks for all those kind words about me....yes i agree we did have some very good moments sharing our foodie passion and movie love....well coming to the farewell....blog ek sarvajanik manch hai isliye mere star ke sabhi saathi dhyan de...amit ki party ko shrimaan arun ne oragnise kiya,lekin meri party ko maine khud organise kiya....sid tum please senti mat hona, ye tumhare liya nahi tha...ye kuch khas vishishit jano ke liye tha jo is samay chasme ke bheetar se muskura rahe honge.....khair mazak tha...party jisne bhi di ho, aapl og aaye the ye badi baat thi....pure vibhag ko bula na saki iska behad khed hai....agli baar laut ke aaunge to zarur sabko nyota dungi....aur aaplogon ka saath itna khoobsurat raha ki jate samay aankhen apneaap hi nam ho gayi.....
    @ ravi ....take care, and this time your blog hardly has any spelling mistakes...cool man

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  2. दूबे... तुमसे इतने दिनों बाद मिलकर वाकई अच्छा लगा। मैं हमेश रवि को दूबे कह कर बुलाता हूं। इसमें मेरा स्नेह और दोस्त के करीब होने की भावना झलकती है। अच्छा लगा देखकर कि तुम अब भी वैसे हो.... क्योंकि कुछ चीजों में सुधार की गुंजाइश ही नहीं होती। खैर मजाक के अलावा... दूबे एक हाजिर जवाब,आत्मविशवास से भरा... और चेहरे पर हमेशा एक कुटिल मुस्कान लिए, एक प्रतिभावान शख्सियत है जिसके आस पास आपको हमेशा एक पॉजिटिव एनर्जी का एहसास होगा। मेरी शुभ-कामनाएं हमेशा तुम्हारे साथ है दोस्त.... यूं ही आगे बढ़ते रहो।

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