गुज़ारिश अलग है, जुदा है, अलहदा है, एक खूबसूरत फिल्म, मै फिल्मे देखते वक़्त उसी के साथ बह जाता हूँ - कई बार देखते देखते रोता भी हूँ, गुज़ारिश ऐसी ही फिल्म है, कुछ एक सीन तो वाकई आपको रुला देंगे ......फिल्म एक काबिल स्टेज ड्रामा की तरह है ......भंसाली वैसे भी एक ऐसे फिल्मकार है जिनकी फिल्म में आर्ट होती है. .... यूँ तो फिल्म का विषय यूथेनीसिया है पर आपसे फिल्म के बारे में बात करते समय मै इच्छा मृत्यु को लेकर बहस नहीं करूँगा, न ही मै इसके पक्ष और विपक्ष के बारे में अपनी राय दूंगा, मेरा मतलब सिर्फ फिल्म से है और इच्छा मृत्यु को मै सिर्फ फिल्म के विषय के तौर पर ही लूँगा.
14 साल से वील चेयर पर एक नर्स के सहारे जिंदगी गुजारता इथन, एक ऐसा कामयाब आदमी जिसने जिन्दगी में बड़े से बड़ा मुकाम हासिल किया, जादू की दुनिया का सबसे बड़ा नाम, पर एक दुर्घटना में सर को छोड़ कर पूरा बदन लकवे का शिकार हो गया, अब अपने महलनुमा घर में इथन अपने घर से एक रेडियो शो होस्ट करता है, लोगो की मुश्किलें सुलझाता है, उन्हें जीने की राह दिखता है...लेकिन अचानक इथन अपनी ऐसी जिंदगी से छुटकारा चाहता है। वह अपनी दोस्त कम वकील से कह कर कोर्ट में इच्छा मृत्यु की याचिका दायर करता है। उसके इस फैसले से उसकी नर्स सोफिया समेत उसके आसपास रहने वाला हर शख्स बेहद हैरान और परेशान हैं क्यूंकि इथन तो जिंदादिली की मिसाल है, वो क्यूँ मरना चाहता है...फिल्म इसी अंतर्द्वंद की कहानी है
फिल्म की स्क्रिप्ट और स्क्रीन प्ले कमाल का है, भंसाली ने साधारण सी दिखने वाली कहानी को बेहद कलात्मक तरीके से पेश किया है। ह्रतिक की सोच और उसके व्यवहार को कैमरे पर उभारने में उन्होंने पूरी जान डाल दी है। कहानी का ज्यादातर हिस्सा एक महलनुमा घर में और बेहद खूबसूरत आउटडोर लोकेशन पर फिल्माया गया है जो कि किसी खूबसूरत पेंटिंग की तरह लगता है. कई फिल्मे अपनी धीमी रफ़्तार के कारन ख़राब दिखती है पर गुज़ारिश की धीमी रफ्तार सुकून देती है
अब बात ह्रतिक रोशन की, वो इस से पहले भी अपने रोल और लुक के साथ एक्सपेरिमेंट कर चुके है, रितिक रोशन ने एक कामयाब जादूगर और फिर व्हील चेयर पर जिंदगी गुजारते एक शख्स के जिन्दगी के एक एक भाव को सिर्फ चेहरे के ज़रिये इतनी संजीदा तरीके से निभाया है जो अपने आप में बेमिसाल है… कई बार वो रुलाते है, कुछ एक बार हंसाते भी है, दरअसल हृतिक, इथन में इतनी ख़ूबसूरती से बदल जाते है की आप हृतिक को भूल इथन के साथ चलने लगते है, ऐश्वर्या हमेशा से मेरी फेवरेट एक्ट्रेस रही है, उनकी एक्टिंग परफेक्ट रही, चहरे चेहरे के हावभाव हो या फिर बॉडी लैंग्वेज़.... इसके अलावा शेर्नाज़ पटेल या फिर सुहैल सेठ या कोई भी जब भी परदे पर दिखा है एक असर के साथ दिखा है
“ये तेरा ज़िक्र है या इत्र है….जब जब करता हूँ महकता हूँ, बहकता हूँ", गाने की ये एक लाइन पूरी फिल्म की रूमानियत बयान करती है, फिल्म में कैमरे ने जब जब घर से बहार का रुख किया है ऐसा लगता है जैसे हम किसी लोकेशन में नहीं बल्कि किसी पेंटिंग को देख रहे है...वो भी एक खूबसूरत पेंटिंग, चाहे वो ऐश्वर्या का नाव पर सवार हो अपनी साइकिल ले जाते हुए घर जाने का द्रश्य हो या फिर बीच पर व्हील चेयर पर बैठे हृतिक जब कल्पनाओ में उठ खड़े होते है और समुन्दर की ओर बढ़ते है....
एक आदमी कब तक लडेगा, कितना लडेगा, किस किस से लडेगा जबकि उसे पता है की उसकी जीत केवल इसी बात की है की आज वो एक और दिन जिंदा है.....एक नर्स जो अपने पेशेंट को कभी बच्चे की तरह पुचकारती है कभी डाक्टर की तरह डांटती हैं और कभी दोस्त की तरह समझाती है पर हकीकत ये है की वो उससे प्यार करती है, उससे जो अपने नाक पर बैठी मख्खी तक नहीं उड़ा सकता, उससे जो क़र्ज़ में डूबा हुआ है, एक नाकाम मोहब्बत, लेकिन नाकाम होने के बाद भी मोहब्बत तो है......एक दोस्त जिसे खुद के दिल को मार कर अपने दोस्त के लिए कोर्ट से इक्षाम्रत्यु मांगने के लिए संघर्ष करना पड़ता है या फिर एक ऐसा डाक्टर जिसने अपनी जिन्दगी के 14 साल अपने पेशेंट को दे दिया जो उसका अज़ीज़ दोस्त भी है..... हम रोते है, हम हँसते है, हमें गुस्सा आता है, हम मरते है क्यूंकि हम इंसान है,..... ये जिंदगी हमने खुद नहीं चुनी, पर हम इसे पूरी शिद्दत से निभाते है, इसी शिद्दत का नाम है "गुज़ारिश"
फिल्म जितनी खूबसूरत है उतनी ही खूबसूरती से आपने इसके बारे में बताया वास्तव में ये एक फिल्म नहीं एक कलाक्रति है वैसे तो भंसाली की हर फिल्म में एक आर्ट होती है फिल्म का हर एक सीन कैनवास पर उतरे एक कल्पना की तरह होता है
ReplyDeleteधन्यवाद सुधीर जी, आगे भी आपसे मार्गदर्शन की आवश्यकता रहेगी. एक बार फिर से आभार
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