"लव आजकल" पर आजकल तमाम फिल्मे लगातार बन रही है, किसी में स्टोरी नयी- तो किसी में कलाकार, पर ट्रीटमेंट लगभग सबका एक ही जैसा रहता है, प्यार का पंचनामा इस मामले में जुदा है, फिल्म की असल ताकत है कहानी का ट्रीटमेंट और रियल लाइफ से उसकी करीबी, हालाँकि फिल्म पारिवारिक बिलकुल भी नहीं है, पर आजकल "यूथ फोकस" फिल्मे इसी तरह बनती है और अगर उसमे कामेडी अच्छी लगी तो चलती भी है, प्यार का पंचनामा भी इसी किस्म की फिल्म है
फिल्म में दिखाया गया है की प्यार में तभी तक मज़ा है जब तक वो हो ना जाए। कुछ दिनों बाद ही लगने लगता है कि ये कहाँ फंस गए, बेवजह की उलझाने परेशान करने लगती है और आप वो नहीं रहते जो आप है. कहानी है तीन दोस्तों रजत, चौधरी और निशांत की जो महानगरो में रहने वाले और मल्टीनेशनल कंपनियो में काम करने वालो नवजवानों की तरह बेतकल्लुफ अंदाज़ में रहते है और आपस में काफी खुश भी नज़र आते है, हालाँकि तीनो की जिंदगी में लड़किया नहीं है, उन्हें इस बात का अफ़सोस भी है पर जब उनकी जिंदगी में लडकियां आती है तो उनकी जिंदगी अफ़सोस हो जाती है, शुरुवात में तो सब कुछ ठीक ही लगता है पर धीरे धीरे लड़कियां उन पर हावी हो जाती है, कभी लडकियों के ताने उनकी जिंदगी मुश्किल करती है, तो कभी दखलंदाज़ी, तो कभी बेपरवाही तो कभी मैच के बजाय शॉपिंग बैग्स उठाए घूमना पड़ता है, और फिर धीरे धीरे वो अपने आपको इस प्यार से जिसने उनकी जिंदगी को जहन्नुम बना दिया से आज़ाद कर लेते है।
वाइकॉम 18 मोशन पिक्चर्स और वाइड फ्रेम पिक्चर्स के बैनर तले बननेवाली इस फिल्म में सारे नए कलाकार है और सबने अच्छा काम किया है लेकिन सबसे ज्यादा तालियाँ बटोरी दिव्येंदु शर्मा ने जिन्होंने फिल्म में लिक्विड का किरदार निभाया है , एक बार फिर से बात फिल्म के ट्रीटमेंट की, कहानी भले ही दिल्ली की हो, पर ट्रीटमेंट इस लिहाज़ से है की आज कल का युवा वर्ग चाहे वो किसी भी महानगर से हो उससे अपने आपको जोड़ सकता है, और इसका क्रेडिट जाता है फिल्म के डायरेक्टर लव रंजन और निर्माता अभिषेक पाठक को.
हालाँकि फिल्म का म्युज़िक साधारण है, गाने कुछ खास नहीं है, और लोकेशंस ज़्यादातर दिल्ली और गोवा की है, फिल्म के खिलाफ एक बात और जो जाएगी वो इसका फैमिली फिल्म न होना, फिल्म में जगह जगह गाली गलौज और द्विअर्थी संवाद है, इसलिए शायद लोग इसे परिवार के साथ न देखने जाये. पर फिल्म की सबसे बड़ी खासियत ये है की जितने भी युवा इस फिल्म को देखने जायेंगे उन्हें कई सारे सीन अपनी जिंदगी के नज़र आयेंगे- वो भी कामेडी के अंदाज़ में, ज़ाहिर सी बात है की तकलीफे जब दूसरे की हो और उसे कामेडी के अंदाज़ में दिखाया जाये तो हंसी आ ही जाती है.
कुल मिलकर इस चिलचिलाती गर्मी में अगर आपके पास करने को कुछ खास नहीं है, आईपीएल के मैच अब आपको बोर करने लगे है, तो प्यार का पंचनामा एक बेहतर विकल्प हो सकता है
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