जब आप किसी ज़रूरी कागजात पर
काम ख़त्म कर रहे होते है तो आखिर में आप क्या करते है – “दस्तखत”.... जो आपकी पहचान है। अपनी
जिंदगी की आखिरी फिल्म को यश चोपडा ने अपना दस्तखत बनाया है। चोपड़ा की फिल्मो की
खासियत होती है जज्बातों में डूबी कहानी, दमदार हीरो, खूबसूरत हिरोइन, बेहतरीन लोकेशंस,
जानदार डायलॉग और दिल को छू लेने वाला म्युज़िक। साथ में एक
फार्मूला भी होता है- खूब सारा रोमांस, रोमांस से निकलता है
दर्द , दर्द आंसू देता है और कायदे से दिखाया गया आंसू
तो बॉक्स ऑफिस पर हिट है ही। जब तक है जान इन सारी कसौटियो पर खरी उतरती है।
यूँ तो हर फिल्म की बात करते वक़्त सबसे
पहले हम उसकी कहानी का ज़िक्र करते है मगर आज बात पहले शाहरुख़ खान की। शाहरुख़ “बैक टू द बेसिक्स” के अंदाज़ में है।
उन्हें एक अच्छी हिट की बहुत सख्त ज़रुरत थी और शायद ये फिल्म उनकी ख्वाहिश पूरी कर
दे। उन्होंने फिल्म में अपने उसी अंदाज़ का इस्तेमाल किया है जिसकी पूरी एक पीढ़ी
दीवानी है। वैसे भी बॉलीवुड में रोमांटिक रोल में फिलहाल शाहरुख़ के आगे अभी भी कोई
नहीं है। शाहरुख़ रोमांटिक डायलॉग बोलते समय बेहद सहज लगते हैं, और बिना कुछ कहे आंखों से बोलने के फन में उनकी महारत है
ही। लेकिन हाँ एक बात ज़रूर है की अब उनके चेहरे पर उम्र के निशान गहराने लगे हैं।
अब बात करते है कहानी की जिसे आदित्य चोपडा
ने लिखा है और जो अपनी धीमी रफ्तार की वजह से फिल्म का कमज़ोर पक्ष है। कहानी के
तीन किरदार समर, मीरा, और अकीरा है। यश चोपड़ा ने जितनी भी प्रेम कहानियों पर
फिल्में बनाईं, उसमें आशिक हमेशा बेमिसाल मोहब्बत करने वाले होते हैं लेकिन
अफसोस कि उन्हें अपना पसंदीदा साथी नहीं मिलता। इस नाकामी को अपने दिल में संजोये
वो उसकी यादों के सहारे पूरी जिंदगी काट देते है। याद कीजिये कभी-कभी या फिर
वीर-जारा। जब तक है जान की कहानी भी इसी तरह की है जो फिल्म की शुरुआत में धीमी और
कहीं कहीं बोरिंग भी है, लेकिन धीरे-धीरे बात बनने
लगती है। दरअसल यहीं यश चोपड़ा ने अपना खेल दिखाया है। उन्होंने एक मामूली कहानी को
अपने दमदार प्रस्तुतिकरण के सहारे छुपा दिया है। यश चोपड़ा हमेशा से इस काम में माहिर
थे। उन्होंने किरदारों के अंदर चल रही भावनाओं को बेहतरीन तरीके से स्क्रीन पर पेश
किया है। कई ऐसे सीन है जो दिल को छूते हैं और आँखों में नमी ला देते है, यही चोपड़ा स्कूल ऑफ़ डायरेक्टिंग की खासियत है। आप एक ही
वक्त में मुस्कुराते है और रोते भी हैं।
कैटरीना कैफ और अनुष्का दोनों खूबसूरत
है और लगी भी। कैटरीना के पास अभिनय के कई शेड्स दिखाने का मौका था। उन्होंने कोई कमाल की अदाकारी तो नहीं की है पर एक्टिंग में कोई बहुत बड़ा
कमाल तो वो कभी भी नहीं करती है । हाँ, दिए गए काम को
उन्होंने खूबसूरती से दिखते हुए निभा दिया इसमें कोई शक नहीं। अनुष्का के
पास बबली गर्ल का किरदार है और उन्होंने भी अपना काम ठीक ठाक किया है । दरअसल मुझे
निराश किया तो ए आर रहमान ने । उनका काम बस ठीक ठाक ही लगा। तमाम गानों में “हीर” बेहतर था। शाहरूख और कैटरीना पर फिल्माया गया ""इश्क शावा" में मेहनत तो काफी की गयी लेकिन सुनने से ज्यादा
ये गाना देखने लायक है। यश चोपड़ा की फिल्मो के म्युज़िक से आप ये उम्मीद करते करते
है की जब आप सिनेमा हॉल से निकले तो फिल्म के गाने आपकी जुबां पर हो, पर ऐसा हुआ नहीं । यहाँ पर फिल्म के बैकग्राउंड म्युजिक का
जिक्र ज़रूरी है जो जानदार है और फिल्म के बेहतरी में मददगार है।
दरअसल यश चोपड़ा को आज भी लगता है की दुनिया
में अच्छे लोग है। ऐसे लोग है जो उम्र भर किसी से प्यार कर सकते है बिना उससे
मिले- बिना उसे देखे। ऐसे लोग है जिनके लिए दुनिया में सबसे अहम् है प्यार और उससे
जुड़े रिश्ते। अगर आपको भी ऐसा लगता है तो फिल्म आपको बहुत पसंद आएगी, और अगर आप इस ख्याल को सपना मानते है तो यही यश चोपड़ा की
खासियत है की वो आपको सपनो की दुनिया में ले जाते है और तीन घंटे तक बाँध कर रखते
है ।
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