Monday, February 15, 2010

पिछले कुछ दिन-

बहुत दिन हो गए लिखे हुए, लिखने के लिए कुछ है भी नही.....इसलिए छोटे छोटे प्रकरण लिख रहा हूँ....लेकिन सबसे पहले अभी तक के 169 पाठको को शुक्रिया

पिछली पोस्ट क्रिकेट की थी तो सबसे पहले उसी पर, स्टार न्यूज़ के पत्रकारों ने मिलकर आपस में क्रिकेट खेलने का निश्चय किया....मैंने लोगो को इकठ्ठा भी किया ...5 लोगो से शुरू हुआ सफ़र अब 23 लोगो तक पहुँच गया है,,....वाकई में मज़ा आ रहा है. ...एक दिन मैंने ठीक ठाक अर्धशतकीय पारी खेली ....जिसकी प्रशंसा लगभग हर किसी ने की, उस दिन मुझे हीरो जैसा सम्मान मिला- हालाँकि मैच हार गए......शाम को अरुण जी ने बड़े मज़ेदार तरीके से कहा- "वाह रवि आज तो तुमने बढ़ी शानदार पारी खेली- ...मै मुस्कुरा दिया- उन्होंने ने भी लम्बा पॉज़ लिया और फिर मुस्कुराते हुए बोले -"लेकिन मैच हार गए" ......मै झेंप गया......उनसे ये प्रतिक्रिया अपेक्षित भी दी, वो विरोधी टीम में जो थे ...खैर निसंदेह वो कमाल के कीपर है ......मै ज़्यादातर सिद्धार्थ शर्मा की टीम में रहता हूँ और उस दिन मैच सीरीज 1-1 से बराबर रही ..........14 फ़रवरी को मै ज़रूरी काम से घर गया हुआ था...इसी बीच कप्तानी को लेकर अनावश्यक विवाद हुआ...खैर अब सब ठीक है.....कूटनीतिक प्रयास रंग लाये ......

इसी बीच इश्किया और माय नेम इज खान के प्रीमियर शो देखे.....इश्किया का चैनल पर रिवियु भी किया...दोनों फिल्मे ठीक थी, और एक बार ज़रूर देखि जा सकती है

रविवार को घर गया हुआ था, वैलेंटाइन होने के कारन लोगो ने कुछ अलग ही अंदाज़ा लगा लिया, कुछ ने फेसबुक में भी लिखा लेकिन ज़्यादातर ने फोन करके या एसएम्एस करके पूछा....मै फिर से साफ़ कर दूँ की मै घर पर था और एक पारिवारिक पूजा में शामिल होने गया था.....खैर मेरे छोटे भाई ने काफी बड़े बाल रख रखे है जिनसे मेरे पापा को खासी चिढ है., उन्होंने उससे कटाने को कहा तो मेरे भाई ने कहा की वो इस बार काफी छोटे छोटे बाल रखेगा, वो फिर उखड गए और बोले की यार तुम इतने अतिवादी क्यूँ हो, मुझे बड़ा मज़ा आया, कुछ वक़्त पहले मेरे साथ भी ऐसा होता था

खैर घर से वापस ऑफिस, सच कहूँ तो ऑफिस भी घर हो गया है, यहाँ के लोग ही मेरी ज़िन्दगी है, सच कहूँ तो कुछ एक को छोड़ कर ऑफिस का हर शख्स मुझे दोस्त लगता है.....बाहर मेरे ज्यादा दोस्त नहीं है,....कुछ है तो वो भारतीय विद्या भवन के है, .......उससे पहले के दोस्तों से तो अब फोन पर भी बाते नहीं हो पाती, इस तरह से कहूँ तो अब स्टार न्यूज़ के बाहर मेरी दुनिया न के बराबर है, और मुझे कोई अफ़सोस नहीं है, ......क्यूंकि मै यहाँ के लोगो से खुश हूँ,......क्रिकेट खेलने में मज़ा आ रहा है....गासिप की दिनिया भी जवान है.......खासकर हिमांशु के पास हर दिन एक नया फ़साना होता है....उन्होंने एक खास मामले में मुझे काफी पीछे छोड़ दिया पर मुझे कुबूल है...

कुल मिलकर सब ठीक है .........Aal iz Well

नोट- नहीं प्रणय, मै नया ब्लाग लिखने के लिए कुछ नहीं लेता....समय मिलता है तो लिख देता हूँ,,,...याद दिलाने के लिए शुक्रिया ..:)

Friday, February 5, 2010

मित्रो को मैच खेलने के लिए बुलाना था, सोचा की थोड़े अंदाज़ से बुलाया जाय

देश संकट में है

मित्रो,
देश संकट में है, भारत माता का स्वाभिमान ललकारा जा रहा है, प्रश्न अब सत्ता का नहीं बल्कि अस्तित्व का हो गया है….. ज़िम्मेदारिया बढ़ गयी है. …..गर्व है की क्रिकेट में हम पहले पायदान में है, पर बहुत दूर से अफ्रीकी कबीलाई लड़ाके आ रहे है, ….ठीक वैसे ही जैसे गोरी गज़नवी आये थे...हमें हमारी ही ज़मीन पर ललकारने, चुनौती देने और हमें पहले पायदान से धकेलने....स्थितिया तब और मुश्किल हो गयी जब द्रविड़ देश का अचूक विश्वसनीय बल्लेबाज़ घायल हो गया और पंचनद प्रदेश का आक्रामक सिपाही भी चोटिल हो गया, गेंदबाज़ी और क्षेत्ररक्षण हमेशा से चिंता का विषय रहे है......ऐसे में दायित्व है हमारा, कि हम अपनी ज़िम्मेदारिया पहचाने.....अधिकारों के लड़ाई के बीच कर्त्तव्य का पथ चुने.....कहा गया है कि युद्ध कि विषम स्थित में नागरिको को सैनिको सा व्यवहार करना चाहिए.......तो बल्ले और गेंद पर हाथ आजमाने के लिए तैयार हो जाइये....वक़्त रविवार सुबह 9 बजे का और स्थान हाई वे के पास का "डी" मैदान निश्चित हुआ है....समय पर पहुचना ज़रूरी है वरना हमारे अपने देशवासी मैदान पर कब्ज़ा कर लेंगे .....

विशेष- ये बड़े सौभग्य कि बात है कि बड़े भाई श्री अनुराग शर्मा हमारे मुख्य संरक्षक के तौर पर जुड़ रहे है.....बड़े भाई श्री शैलेन्द्र कुमार जी अभिवावक और मुख्य मार्गदर्शक कि भूमिका में है ही... लक्ष्य दुरूह है पर असंभव नहीं

अब मैदान पर मुलाकात होगी.......जय भारत

Thursday, January 28, 2010

Thursday, January 14, 2010

हाज़िरी

फिर से कई दिन गायब रहा, आज अनुराग शर्मा ने भी टोका …..विश्वास मानिए की वजह सिर्फ और सिर्फ समय की कमी थी... ऐसा नहीं है की मै कोई खास व्यस्त रहने वालो में से हूँ पर हर दिन करीब 12 घंटे ऑफिस में रहने के बाद और सिर्फ एक दिन अवकाश के कारण जिस्म और जान दोनों इजाज़त नहीं दे रहे थे की कुछ लिखा जाए. इस बार सोचा था की रोजाना की चर्चा करने के बजाय कुछ और लिखूंगा पर विषय नहीं मिल रहा था और इस कारण भी देर होने लगी. खैर आपसी बाते - मुलाकाते छूट न जाय इसलिए फिर से हाज़िर हूँ कर्मो का लेखा जोखा लेकर…..

दरअसल तारीख 7 जनवरी से हम रात्रि सेवा में चले गए और लगातार 5 रातो तक रात के कोहरे, अपराध और सुबह पेपर्स में छपने वाली खबरों के साथ धींगामुश्ती चलती रही... शिफ्ट बेहद सरलता पूर्वक ख़त्म हो गयी....इसी बीच नयी टीआरपी रेटिंग्स आई और स्टार न्यूज़ नंबर 1 चैनल बन गया. तमाम तारीफे हुई.....मुझे भी बड़ो से शाबाशी मिली.....ये क्षण काफी दिनों बाद आये इसलिए काफी खुश थे हम सब……

इसी बीच दो पुराने साथियो से बात हुई..... पहली दिल्ली आने के बाद मेरे सबसे अच्छे दोस्तों में से एक दीप्ति रावत (अब बोरा), जो मेरे साथ भारतीय विद्या भवन में जर्नलिज्म की साथी थी, भवन में हमारी अच्छी दोस्ती थी और हम ज़्यादातर एक ही टीम में रह कर काम करते थे. मेहनत के सारे काम मै किसी तरह उसी से करवा लेता था....और उस पर भी उसे एहसास दिलाता था की सब मै कर रहा हूँ.... फिलहाल वो इस वक़्त रायल ब्रिटिश आर्मी ( मतलब UK, वहां जाने वाले हर शख्स को मै यही तमगा देता हूँ) में है, भवन में भी वो काफी तेज़ स्टुडेंट्स में थी, वहां पर भी उसने रेडियो, अखबार और दुसरे माध्यमो में काम किया है, मजेदार बात ये है की जब भी हमारी बात होती है वो कुछ नया कर रही होती है- बिना पुराना काम छोड़े.....लाज़वाब.... उसकी शादी हो गयी है और वो काफी मज़े में है.....मेरी शुभकामनाये उसे.....

दूसरे है सैय्यद आलम - आलम लखनऊ यूनिवर्सिटी में Philosophy में हमारे साथ थे और खासे लफंगे थे...... मै आज तक एक से एक लफंगों और छिछोरों से मिला हूँ पर आलम भाई के आसपास भी कोई नहीं है... मै खुद भी कोई बहुत बुरा खिलाडी नहीं था पर साहस और दुस्साहस के बीच के फर्क को जिस तरह आलम ने ख़त्म किया था वो सबके बस के बात नहीं....बेहद करीबी दोस्त...गायब हो गए थे पर टीवी पर मुझे देखने के बाद कहीं से मेरे नंबर जुगाड़ लाये और वही आवाज़- " अमा क्या बे!भूल ही गए यार तुम”……. आलम फिलहाल लखनऊ में ही है और ऑटो स्पेयर्स के धंदे में है ....सही है.....उसे भी ज़िन्दगी मुबारक

रात की शिफ्ट ख़त्म होने के बाद शाहिद कपूर और जेनेलिया डिसूज़ा की आने वाली फिल्म चांस पर डांस के प्रमोशन को कवर करने गया... मै तो उन दोनों को सस्ते में ही निपटाना चाहता था मगर लगभग हर चैनल को 5 मिनट देने वाले शाहिद और जेनेलिया डट गए की हमें आधा घंटा देंगे, मै भी परेशां की मियां इतनी देर तक आपसे क्या बाते करूँगा, सारी कंट्रोवर्सी तो मै 5 मिनट में ही निपटा दूंगा फिर बाकी का वक़्त क्या करेंगे,,.. वैसे भी मै सिर्फ वही सवाल करता हूँ जो चैनल पर चले... खैर दोनों के इंटरव्यू किये और तीन स्टोरीज़ बन भी गयी... और चली भी..... मेरी बल्ले बल्ले. ज़ाहिर सी बात है एक स्टोरी शाहिद और करीना के टकराव की थी. ....शाम को बड़े भाई पंकज झा साहब का मैसेज आया की दिलज़लो की दुखती राग पर हाथ मत रखो- शायद उन्होंने भी खबर चलते देखी-- मैंने भी ज़वाब में एक उपहास भरा मैसेज डाला. ....टीवी देख रहा दीपांशु तुरंत बोल पड़ा की "यार तुम काफी मोटे हो गए हो"...मुझे भी पता है, पर वो बिना कहे या कहूँ की ताना मारे कहा रहने वाला था.... स्टोरी चलने के वक़्त शालिनी शुक्ला का भी मैसेज आया.....हम स्टार न्यूज़ में साथ आये थे.....मैंने सीधा उसी से पूछा की क्या मै काफी मोटा हो गया हूँ.....उसने डिप्लोमेटिक जवाब दिया....मुझे अच्छा लगा...कोई सीधे सीधे मेरी बुराई कर दे...मुझे कभी अच्छा नहीं लगता......मुझे क्या किसी को अच्छा नहीं लगता....बस कोई कह देता है...कोई नहीं कह पाता……….

कल का दिन प्रीती जिंटा के नाम रहा......सुबह वो एक के NGO लिए विधवा मदद के लिए काम करती नज़र आई तो शाम को चेरी ब्लेयर के साथ लोहड़ी मनाती...उनकी उदासी पर मैंने अपने फेसबुक पर लिखा जो कुछ साथियो को नागवार गुज़री…. श्रुति और रानिता मेरे नज़रिए के खिलाफ थे तो वहीँ दिव्या दीपांशु और नीरज को मेरी बात सही लगी …….सबसे अलायदा टिप्पड़ी तो शुची बाजपाई की थी की मै कालेज के ज़माने से अड़ियल हूँ,..मुझे तो नहीं लगता पर हो भी सकता है...खैर मुझे वाकई प्रीती जिंटा काफी उदास और डरी सहमी लगी …..

मकर संक्रांति होने के कारण पापियो का पापी और मेरा रूम मेट दीपांशु गर्ग आज सुबह गंगा स्नान पर हरिद्वार गया है...मुझसे भी पूछा था पर त्योहारों के दिन मै मंदिर नहीं जाता.....गीजर में मेरे हिस्से के गरम पानी का इस्तेमाल करके उसने सुबह की शुरुवात भी पाप से की....मजबूरन मेरे हिस्से ठंडा पानी आया....आफिस में आते ही सुबह की सर्दी पर रिपोर्टिंग और फिर सब रोज का काम.....फिलहाल आज तक यही......इसी बीच कुछ और याद आया तो ज़रूर बताऊंगा........

एक खबर- मेरा ब्लॉग पढने वाले पाठको की संख्या आज सुबह तक 67 हो गयी है, भारत से 59, अमेरिका से 5 और इंग्लैंड, कनाडा और सउदी से 1. आप सभी को धन्यवाद और शुभकामनाय

Wednesday, January 6, 2010

Aaal iz Well

जनवरी 4- यानी मेरा जन्मदिन...... मैंने अपने फेसबुक पर भी यही बात डाली है की इस साल भी मुझे उन सभी लोगो की शुभकामनाये आई जिन्होंने पिछले साल भी विश किया था. कई लोग बढ़ भी गए...यानी मैंने एक भी दोस्त नहीं खोया है और यही सबसे अच्छा गिफ्ट था….दरअसल मै थोडा सा चिडचिडा और जल्दी ही आपा खोने वालो में से हूँ……नुक्सान उठाने के लिए हर वक़्त तैयार...ऐसे में अगर सारे दोस्त साथ बने रहे तो किस्मत के साथ साथ उन सभी को भी श्रेय जाता है...आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया

Sunday, January 3, 2010

साल की अनूठी शुरुवात

दो दिन तक गायब होने का गुनाहगार हो गया मै, आज दोस्तों के फोन आये की क्या मियां - दो दिनों में ही भूत उतर गया, इसलिए अब इतनी रात में आ बैठा हूँ,..वैसे भी मुझमे कोई विलक्षण पांडित्य तो है नहीं- जिसके दर्शन मै आपको करवा सकूँ. मै तो बस "कहाँ था, क्या कर रहा था, किससे मिला" जैसी बाते ही करता हूँ...हाँ, अगर कभी ज्यादा गर्मी लगी तो भाषाई चमत्कार ( 3 idiots के सन्दर्भ में) भी कर सकता हूँ .....

शुरुवात करते है 31 दिसंबर की शाम से जब दो शातिर दीपांशु और अरुणोदय के संगत में मै फंस गया, कबाब पराठे से लेकर बिरयानी तक वो सारे गुनाह किये जो पेट और जिस्म के दुश्मन है, खैर ये दुश्मनी आगे भी कायम रही. साथी बदलते गए- बढ़ते गए- दुश्मनी भी चलती गयी. सुबह घर पहुँचते पहुँचते 4 बज गए. बीच का ब्यौरा मै जानबूझ कर हज़म कर रहा हूँ, उसके बाद जो सोये तो दोपहर 12 बजे उठे .

बचपन में मम्मी ने सिखाया था की नए साल के पहले दिन की शुरुवात बड़ो के आशीर्वाद से और एक दुसरे को बधाई दे कर करते है, स्कूल में भी बदस्तूर ये सिलसिला जारी रहा. मगर शायद ये पहली बार हुआ की न किसी को फोन किया न ही एसएम्एस. हाँ जिनके बधाई सन्देश आये उन्हें ज़वाब ज़रूर दिया- और ये सुनिश्चित किया की वो सिर्फ एक फारवर्ड मैसेज न हो.

लगता है की बीती शाम के कबाब से दीपांशु का दिल नहीं भरा था तो उन्होंने फिर लंच में कबाब पराठो की ख्वाहिश जाहिर की. न करना तो मैंने सीखा ही नहीं है तो मै भी तैयार हो गया. इससे बीच करीब दो बजे आहूजा सर का फोन आया की आमिर- चेतन भगत विवाद में फिल्म के डायरेक्टर राजू हिरानी की प्रतिक्रिया लेनी है इसलिए तुम नोयडा में होटल रेडिसन निकल जाओ. दीपांशु को अट्टा जाना था तो वो भी साथ हो गए. खैर फिल्म की पूरी टीम के साथ मुलाकात तो हुई मगर राजू हिरानी ने बेहद सम्मान देते हुए कहा की उन्होंने सुबह से ब्रश भी नहीं किया (उन्हें देख कर लग भी रहा था) इसलिए वो अभी बाईट नहीं दे सकते- मै प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उनसे मिल लूँ- वो इंटरव्यू दे देंगे. हमने बहुत कोशिशे की पर कामयाब नहीं हो पाए. कोशिशो की कोई कीमत नहीं होती- परिणाम न देने के कारण मेरे प्रयास शून्य साबित हुए.......

नाकाम आशिक की तरह हम बोझिल कदमो से पीसी के लिए गए लेकिन वहां का माहोल तो अद्भुत था. आम जनता को पता चल गया था की आमिर मॉल आये है. सैकड़ो अति उत्साहित लोग सीढियो एक्सलेटर पर कब्ज़ा जमाये हुए थे.....गालियाँ देते और खाते किसी तरह जब हम आगे पहुंचे तो एक "फुंके हुए बुड्ढे" से माफ़ कीजेयेगा एक बुजुर्गवार से उलझ गए. उनका कहना था की "तुम मीडिया से हो और इसलिए कहीं भी जा सकते हो , ये क्या बात हुई" वो शायद किसी अच्छे पद से रिटायर हुए होंगे- अंग्रेजी पर उनकी पकड़ कमाल की थी. कोई और वक़्त होता तो मै ज़रूर बहस करता मगर पिछले लक्ष्य की नाकामी ने आगे के काम को कायदे से करने के लिए प्रेरित किया था इसलिए मै बिना बहस के आगे जाने लगा. झंडू पंचारिष्ट की सेवन से उर्जा लिए हुए बुजुर्ग ने फिर मुझे ललकारा, मैंने लखनवी तहजीब का ख्याल करते हुए फिर अनसुना करने का नाटक किया. तीसरी बार फिर उसके मुझे ललकारने पर मैंने शालीनता से कहा की " i am not here for fun, its my job" उसने फिर मीडिया कर्मियो को लेकर बाते कही जो साधारण मौको पर मुझे नागवार गुजरती पर मै चुपचाप सुन लिया...हाँ इस पूरे प्रकरण में आसपास जमा भीड़ ने काफी आनंद लिया- उनकी नज़र में तो मै ही खलनायक था क्यूंकि मै सरलता से अन्दर जा सकता है, खैर ये वहम भी टूट गया और सिक्योरिटी वालो ने अन्दर आने से मना कर दिया. काफी देर तक बहसबाजी के बाद अन्दर घुसने को नहीं मिला. बुजुर्गवार फिर तफरीह लेने वाले अंदाज़ में बोले अगर हमें अन्दर नहीं जाने दोगे तो इन्हें भी रोको.मेरे काम में दखल के पर्याप्त कारण हो चुके थे...इसी बीच आमिर वहां से गुज़रे, साफ़ था की वो पहुँच गए थे और हम नहीं. मै तो वैसे भी जल्दी ही आपा खोता हूँ. इस बार मैंने सिर्फ उसे घुरा. शायद उसे लगा की मै या तो काफी सीधा हूँ या काफी बेपरवाह- उसने फिर कहा हम नहीं जाने देंगे. अब मै अपनी रंग में आ चुका था- मैंने उससे कहा की " भो..... के एक लफ्ज़ भी आगे बोला तो कैमरा .....से डाल कर ...... से निकाल दूंगा. तेरी ........ को ........ , ... और तमाम ...........इसमें मेरी योग्यता को बचपन से ही काफी सम्मान मिला है- और गालियो की इस गरिमा ने असर भी दिखाया, कुछ हटे- कुछ दूर गए... इतनी देर में पीआर दिखी और उसने अन्दर आने का इंतज़ाम किया....प्रेस कांफ्रेंस में विधु विनोद चोपड़ा की बेवकूफी ने चैनल को सबसे आकर्षक खबर दी. तीन पत्रकार और उनकी यूनिट होने के कारण हमने इस खबर में तमाम साथी चैनलों को पीछे छोड़ दिया. और एक सर्वव्याप्त खबर "स्टार खबर" में बदल गयी. विधु विवाद सबको पता है इसलिए उस पर चर्चा का कोई मतलब नहीं है. उसके बाद लौटने के बाद जो तारीफ (?) मिली वो अद्भुत और अउल्लेखनीय है. पता नहीं अउल्लेखनीय कोई शब्द है भी या नहीं.

खैर रात 10 बजे वापस घर. और दीपांशु गर्ग के साथ तमाम हस्तियो के वस्त्रहरण का दौर शुरू हो गया. ये एक ऐसा कार्यक्रम है जिसे हम दोनों काफी दिल लगा कर करते है. अफवाहों और खबरों से जुडी हर सामग्री इसमें होती है. पक्ष- विपक्ष और हमारा पक्ष. इसमें बॉसेस की बुराई, साथियो की खिचाई, और कुछ हो न हो लडकियो की बाते ज़रूर होती है. दीपांशु गर्ग के पास इन मामलो की खबर अक्सर मुझसे पहले और ज्यादा सटीक होती है

दो जनवरी फायदे नुकसान की रही. मेरा जन्मदिन आने वाला है-उसके दो गिफ्ट समय से पहले ही मिल गए...जो बहुत अच्छे थे- उनके बारे में विस्तार से अगले पोस्ट में...नुकसान ऐसा की मै आज पूरे दिन खाना नहीं खा पाया, कभी मौका नहीं मिला तो कभी मन नहीं किया. तान्या दवे ने मेरे सहित कई लोगो को केक खाने के लिए बुलाया था पर बुलेटिन की वजह से वहां नहीं जा पाया. बाद में तान्या ने तफरीह भी ली की केक काफी शानदार था. बुलेटिन आज के काफी अच्छे रहे, नोयडा एनकाउंटर से लेकर फरार आतंकियो तक. देर रात उत्तरी ग्रिड में बिजली सप्लाई और कोहरे की खबर भी चढ़ गयी... कुल मिलकर एक व्यस्त दिन......

तो ये था पिछले दो दिनों का लेखा जोखा- आशा ही नहीं बल्कि पूरी उम्मीद है की धीरे धीरे मेरे पाठक कम हो जायेंगे क्यूंकि किसी को भी दिलचस्पी नहीं होगी की मैंने क्या क्या किया...पर मै फिर भी यही सब लिखूंगा क्यूंकि ये सब मेरे अपने लिए है.......................कितना स्वार्थी हूँ मै

Thursday, December 31, 2009

साल का आखिरी दिन

आज सुबह की शुरुवात बेहद शानदार रही, ऑफिस में शिवम् शुची समन्विता कौशल मनोज न्रपेंद्र के साथ कुछ बेहद मजेदार बाते हुई. बात बात में ही समोसे और कचौडिया भी मंगाई गयी.... जाहिर सी बात है सबसे ज्यादा मज़े लेकर खाने वालो में से मै ही था, पिछले 2-3 सालो में शरीर का सत्यानाश कैसे करते है, का मै एक बड़ा उदाहरण हूँ. पर "खाने" और "सोने" का मज़ा ही कुछ अलग है.


खैर खुश होने की वजह दूसरी है, आज बचपन के दोस्त नीरज से संपर्क हुआ, उसने मेरा ब्लॉग पढ़ा और मुझे शुभकामनाये भी दी, नीरज एक इंजीनियर है और गुडगाँव में कार्यरत है. हम स्कूल के दिनों के दोस्त है. और वो मेरा सबसे अच्छा दोस्त था- दोस्त है. हालाँकि अब मिलना बहुत मुश्किल से हो पाता है. स्कूल में हम दोनों ने इकठा रहकर अपने शिक्षको के .....(नाक) में दम कर रखा था. कई बार क्लास से साथ साथ बाहर निकाले भी गए, पर एक स्टुडेंट के तौर पर हम दोनों तमाम गंभीर टाईप के विद्यार्थियो से बेहतर थे. हम केमेस्ट्री का ट्यूशन "पी एस यादव" के यहाँ पढने जाते थे. उनकी नज़र में हम में काबिलियत तो थी मगर लापरवाह थे......वो धमकाते थे की “तुम दोनो के लक्षण फेल होने वाले जैसे है. सिर्फ दो दिन पढ़ लो तो पास हो जाओगे”. हमने उनकी बात मानी और सिर्फ दो ही दिन पढ़ा...हम दोनों ही केमेस्ट्री में डिकटेंशन लेकर आये... UP Board में डिकटेंशन लाना बहुत बड़ी चुनौती होती है... दूसरे बोर्ड्स (90%+ Type) की पूरी इज्ज़त करते हुए मै ये कह रहा रहा हूँ……


इसके अलावा "भवन" के दोस्त ध्रुव अरोड़ा से भी बात हुई, उसका कुछ दुबई का प्लान बन रहा है- मगर अभी कुछ उसने खुलकर नहीं बताया. प्रणय शर्मा का भी जी-चैट पर ब्लॉग की बधाई का मैसेज आया पर मशरूफियत की वजह से ज्यादा बात नहीं हो पायी. वो छोटे भाई जैसा है. हमने स्टार न्यूज़ में साथ काम किया है.


सुबह मम्मी जी और पापा जी से भी फोन पर बात हई थी- पापा जी ने "हम तुम्हारे बाप है" वाली स्टाइल में ज्ञान दिया है- उनके बात करने के तरीके का मै बचपन से मुरीद हूँ- न चाहते हुए भी उन्होंने मुझे किसी काम के लिए मना लिया है, खैर फायदा भी मेरा ही है- इसलिए मै बेहद जल्दी पूरी तन्मयता से उनके आदेश पालन में लग जाऊँगा


खबर के मैदान में तमाम खबरों के बीच टेलीग्राफ पर खबर दिखी की अमेरिका में एक वेदर चैनल की "एंकर" को बुलेटिन पढ़ते वक़्त उसके बॉय फ्रैंड ने शादी के लिए लाइव प्रपोज़ किया, थोड़ी ही देर में विजुअल भी मिल गए... मामला फिक्स सा था- मगर था रोचक .


दो बेहद शातिर दोस्त दीपांशु और अरुणोदय शाम का कुछ प्रोग्राम बना रहे है, दीपांशु ने कल शाम के डिनर की लाश बिछा दी थी, देखते है आज क्या होता है……….. जो भी होगा- अगर बताने योग्य हुआ तो ज़रूर बताऊंगा

Wednesday, December 30, 2009

प्रतिक्रियाये

ब्लॉग लेखन को अपेक्षा से अधिक प्रतिक्रियाये मिली, कुछ ने बाकायदा सुझाव भी दिए, दीपांशु और प्रिया अपनी शुभकामनाये दर्ज करवाने में सफल रहे, सिद्धार्थ बेचारे पोस्ट नहीं कर पाए तो उन्होंने अपनी शुभकामनाये मेल कर दी, इसके अलावा मेरे भाई रूद्र ने भी फोन किया, नवीन भाई ने भी प्रोत्साहित किया, हिमांशु त्रिपाठी ने भी खासी तारीफ की, इसके अलावा सौम्या, नेहा और बिद्या से भी चर्चा हुई, प्रवीण यादव ने भी मार्गदर्शन करने का वायदा किया है- पर उनकी तबियत को देखते हुए मुझे संदेह है. मनोज कुमार ने ब्लॉग पढने की बात कही है. समन्विता ने भी कहा की मुझे प्रयास जारी रखना चाहिए. दीपांशु के माध्यम से विनोद जी डबराल को भी पता चला या शायद उन्होंने पढ़ा भी और उन्होंने भी हौसला बढाया............... आप सभी का शुक्रिया,
कल रात आफ्टरनून शिफ्ट के बाद आज सुबह मोर्निंग में आना सजा जैसी होती है मगर इस सजा में मज़ा ये है की मुझे अपनी ख्वाहिशे पूरी करने के लिए शाम मिल जाती है. आज शाम को फिल्म "रात गयी- बात गयी" का मीडिया के लिए प्रेस शो है, अगर आहूजा सर भेजेंगे तो मई वह जाकर फिल्म का रिव्यू करना पसंद करूँगा और अगर उन्होंने मना किया तो बहुत दिनों से एक पुराने दोस्त की शिकायत दूर करने का बिलकुल सही मौका है- पर उसके लिए भी कनाट प्लेस जाना पड़ेगा.
खैर आज ऑफिस पहुंचकर "मानेसर मंत्रणा" से वापस आये मित्रो ने इस प्रवास को कामयाब बताते हुए क्रिकेट मैच का जिक्र - जो काफी रोचक थी. रुचिका- राठोड प्रकरण आज भी सबसे बड़ी खबर है, पहले राठोड साहब हँसते हुए दिखाई दिए थे- जो शायद इस पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा असर करने वाला विजुअल था पर आज वो काफी परेशान दिखा, हमें भी एक बार फिर राठोड के माध्यम से बाजुओ की ताक़त को आजमाने का मौका मिला है, राठोड को सजा मिलती है या नहीं ये तो भविष्य के गर्त में है- लेकिन ऐसे आरोपों और उनकी पुष्टि के बाद क्रूर हंसी नहीं दिखनी चाहिए.
दोपहर १२ बजे तक तमाम खबरे आ गयी, ये सुखद स्थित थी, अन्यथा खबरों या उनकी गुडवत्ता में कमी परेशान करने वाली होती है. कुल मिलाकर काफी गहमा गहमी है और चैनल पर लगभग सारी बड़ी खबरे और जगहों से पहले और विजुअल्स के साथ चली है....आगे बचे दिन के लिए संकेत अच्छे है.......अगर आज मौका मिला तो आज अन्यथा कल फिर मुलाकात होगी

Tuesday, December 29, 2009

सूचना

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Monday, December 28, 2009

प्रथम प्रयास

बहुत दिनों से सोच रहा था की अपना कोई ब्लॉग हो जहाँ मै भी अपने दिल की बात रख सँकू, निश्चित तौर पर इस कार्य को करने की प्रेरणा बड़े बच्चन साहब से और तमाम मीडिया ब्लॉग्स से मिली. साथ में रितेश वर्मा जैसा सहयोगी हो जिनकी दक्षता नेट के इस मायाजाल में उतनी ही है जितनी की सौरव गांगुली को ऑफ साइड में स्ट्रोक खेलने की- तो बस तैयार हो गया हमारा भी ब्लॉग.. अब हम भी खुद लिखेंगे और खुद पढेंगे.
पर दक्ष प्रश्न है की लिखे क्या, किसी की आलोचना करते समय हम इतना गिर जाते है की माँ बहन की गालियाँ भी उसे अलंकार लगने लगे, वहीँ तारीफ़ करते वक़्त उसे खुदा का दर्ज़ा दे देते है... जाहिराना तौर पर हम कुछ ज्यादा ही जज्बाती है और इसमें हमारी गलती भी नहीं है. हम ऐसी ही कौम से आते है. इन लोगो को हिन्दुस्तानी कहा जाता है- साले बड़े इमोशनल होते है. समसामियिक विषयों पर ज्ञान दे सकते है पर क्या करे या तो मुद्दों में गर्मी नहीं रही या हम शुष्क हो गए- जब कार चलाना सीख रहे थे तब पहिये के नीचे पिल्ला आ गया और साला मर गया. एक हफ्ते तक खाना नहीं खाया गया और महीनो साला सपनो में आकर डराता रहा, दोस्तों ने जाना तो बड़ा मजाक उड़ाया क्यूंकि कालेज के दिनों में हम बिलकुल वैसे ही लड़के थे जिनके बारे में माँए अपने बच्चो से कहती थी की "इसके साथ मत खेला करो- गन्दा बच्चा है".. काफी लड़ाई झगडा लगा रहता था . पर उस पिल्ले ने मर कर जो लात मारी की उस वक़्त की जिन्दगी मुहाल हो गयी. खैर ये "उस वक़्त" की बात है . अब तो इंसानों की मौत भी वो दर्द नहीं देती. पर मै इसे बुरा भी नहीं मानता. ये ऐसा कुछ नहीं है जिसके बारे में मुझे इसमें आने से पहले पता न हो, .......मुझे पता था की मीडिया में आकर "कौतुहल" "सामान्य" में बदल जायेगा. और मै इसके लिए तैयार था...मै इसे पसंद भी करता हूँ...
पर सवाल अभी भी वही है की क्या लिखूंगा, फिल्मो और क्रिकेट के बारे में मेरी अपनी राय ज़रूर रहती है- तो उसे तो लिखूंगा ही, साथ में रोजानामाचा भी रखने की कोशिश करूँगा... कम से कम वायदा तो कर ही सकता हूँ........