हिंदी सिनेमा में बहुत दिनों से किसी खालिस रोमांटिक फिल्म की कमी महसूस की जा रही थी। जब मौसम के प्रोमोज आये तो हर किसी को ये लगा की ये वो फिल्म है जो मोहब्बत के नए मायने सामने लाएगी। फिल्म का प्रमोशन भी कुछ इसी अंदाज़ में हुआ । फिल्म है भी रोमांटिक, मगर अफ़सोस की मौसम काफी कुछ उस तरह की है जिसमे एक लेखक कहानी तो लिख तो देता है पर वो ये नहीं तय कर पाता की इसमें से क्या रखू या क्या हटा दूँ. ? फिल्म में फ्लो का अभाव इस कदर नजर आता है की जैसे ही आप फिल्म को पसंद करने लगते है, आपके मुह पर 10 मिनट की बोरियत का तमाचा पड़ जाता है । पहला हाफ तो फिर भी हंसी मजाक में कट जाता है, लेकिन इंटरवल के बाद तो कई बार मन में ये सवाल उठता है की आखिर ये सीन फिल्म में क्यूँ है ? दरअसल अगर डायरेक्टर खुद अपनी ही फिल्म पर फ़िदा हो जाए तो फिल्म के लिए मुश्किल हो जाती है, और यही बात फिल्म के लिए सबसे खतरनाक साबित हुई।
कहानी -
मौसम की कहानी को उम्र के अलग अलग दौर और उस वक़्त की घटनाओं के मेल से बुना गया है। फिल्म के पहले मौसम में पंजाब के गांव में रहने वाले वाले हैरी (शाहिद) और कश्मीरी से विस्थापित हुई आयत (सोनम) का एक-दूसरे को पसंद किया जाना दिखाया गया है। दोनों फिल्म में कई बार मिलते है, बिछड़ते है । फिल्म में विलेन हालात है जो कभी कश्मीरी आतंकवाद के रूप में तो कभी अयोध्या कार सेवा के रूप में तो कभी बाम्बे ब्लास्ट के रूप में और गुजरात दंगो के रूप में सामने आता है। यकीन मानिये की जब तक कहानी पंजाब में रहती है फिल्म में कशिश रहती है। लडकपन का रोमांस देखना वाकई मज़ेदार लगता है, पर ज्यों ज्यों कहानी आगे बढती है, उसे हज़म करना मुश्किल हो जाता है ।
अभिनय
शाहिद और सोनम दोनों आज के ज़माने के स्टार है। दोनों ने अपना काम अच्छा भी किया है, मगर अलग अलग। रोमांटिक फिल्मो के लिए बहुत ज़रूरी होता है की लड़का और लड़की में केमेस्ट्री दिखे जो अफ़सोस इस फिल्म में नदारद है । एअर फोर्स में शामिल होने के पहले के द्रश्यो में शाहिद कपूर खासे जमे है। सोनम कपूर अपने रोल के मुताबिक फिल्म में मासूमियत और खूबसूरती को समेटे हुए है। मगर दोनों साथ साथ उस कदर के ज़ज्बात को सामने नहीं ला पाए जिसका दावा ये फिल्म कर रही थी । जहाँ तक दुसरे कलाकारों की बात करे तो सुप्रिया पाठक बेहतरीन कलाकार है और बुआ के रूप में उन्होंने उम्दा काम किया है, अनुपम खेर भी दिखते है पर यहाँ अदिति शर्मा (रज्जो ) का जिक्र करना ज़रूरी है जो तमाम बड़े कलाकारों के बीच ध्यान खीचने में कामयाब रही है।
म्युज़िक और सिनेमैटोग्राफी
फिल्म म्यूजिकल हिट है। चाहे वो 'रब्बा मैं तो मर गया ओए' हो या फिर "सज धज कर" । इसके अलावा "जब जब चाहा तूने" गाना भी शानदार है. फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष फिल्म का म्युज़िक ही है जो वाकई काबिले तारीफ़ है। इसके अलावा फिल्म के सिनेमैटोग्राफर विनोद प्रधान का काम भी बेहद शानदार है, उनके हर शॉट में खूबसूरती है। रही बात डायलॉग की तो उनमे कुछ खास नहीं है.
आखिरी बात-
तो लाख टके की बात ये है कि माना कि पंकज कपूर बेहद शानदार एक्टर है, ये भी माना कि शाहिद और सोनम सुपर स्टार है, ये भी माना कि रोमांटिक फिल्म का मैदान खाली है और ये भी माना कि फिल्म म्यूजिकल हिट है. मगर अफ़सोस ये सारी बाते फिल्म को अच्छी नहीं बनाते। फिल्म सुस्त है और गैर ज़रूरी द्रश्यो से भरी पड़ी है. तकलीफ तो इस बात की है की गलती बेहद काबिल पंकज कपूर के हाथो हुई. मौसम को 5 में से 2 अंक मिलते है
awesome review...
ReplyDelete