एक
लाइन में–
कई
सारे अनसुलझे सवालो और कमज़ोर क्लाइमेक्स की एक दिलचस्प फिल्म
हिट
या फ्लॉप –
बात
अगर बिजनेस की है तो फिल्म अपनी कमाई आराम से कर लेगी
देखें
या न देखें – देख लीजिये
कहानी
क्या है ? - याद
कीजिये कि जब आप बच्चे थे तो भले ही आपको भूत प्रेत और चुड़ैल से डर लगता हो लेकिन
इनकी कहानी सुनते बड़े मजे से थे। बोबो (इमरान हाशमी) जो पेशे से जादूगर है, बचपन में डायन की किताब
पढ़ने की वजह से अजीब अजीब किस्म की कल्पनाये करता था। उसके अलावा उसके घर में छोटी बहन मीशा और पिता है। एक दिन उनकी
जिंदगी में डायना (कोंकणा सेन शर्मा) नाम की महिला आती है और किताब के फेर में
फंसा बोबो उसे डायन समझने लगता है। इसी फेर में इन सबकी जिंदगी बदल जाती है । कैसे
बदलती है –
ये
आप फिल्म में देखिएगा क्यूंकि पूरी कहानी बताऊंगा तो क्या ख़ाक मज़ा आएगा।
एक्टिंग
कैसी रही ? - एक्टिंग
के मामले में सबसे ज्यादा प्रभावित कोंकणा सेन शर्मा करती हैं। अपनी बड़ी बड़ी
आँखों और मुस्कान का क्या गज़ब इस्तेमाल उन्होंने किया है। मुझे तो फिल्म से सबसे
ज्यादा पसंद उन्ही की अदाकारी आई। पिछले कुछ वक़्त से इमरान हाशमी ने अपना अंदाज़
बदला है। हैरान परेशां आदमी की भूमिका वो अच्छे से निभा लेते है और इसमें भी
उन्होंने इसे साबित किया है। हुमा कुरैशी अपनी हर फिल्म से और बेहतर होती जा रही
है मगर यही बात कल्कि कोइचलिन के बारे में नहीं कही जा सकती। खैर उनके लायक कुछ
ज्यादा था भी नहीं। बाकी कलाकारों का काम औसत है ।
बाकी
सब ? - मेरी
नज़र में हॉरर फिल्मों में बैकग्राउंड म्युज़िक की खासी अहमियत होती है और इस
फिल्म का भी बैकग्राउंड म्युज़िक आपको डराने में मदद करता है। फिल्म में म्यूजिक
विशाल भारद्वाज का है और सुनते वक़्त ये साफ़ पता चलता है। सुनिधि चौहान का “बेचारा दिल” एक दिलचस्प गाना है जो आपको
अपनों अल्फाजो के ज़रिये बताएगा की उस पर कलम गुलज़ार की चली है । इसके अलावा
सिनेमोटोग्राफी और कंप्यूटर ग्राफिक्स भी अच्छे बन पड़े है। फिल्म के संवाद विशाल
भारद्वाज और मुकुल शर्मा ने मिलकर लिखे हैं पर कहीं कोई बहुत छाप छोड़ देने वाला
डायलोग नहीं है।
मेरे
दिल की - कनन्न
अय्यर ने शुरुवात की आधी फिल्म कायदे की बनाई है और इंटरवल भी अच्छे सस्पेंस पर
लिया है। फिल्म की यूएसपी ये है कि वो अपने अंदाज़ और रहस्यों से डराती है और जब
भूत सामने आता है तो दर्शक कहानी में उसे स्वीकार कर लेता है। यहाँ पर लिफ्ट में
फिल्माया गए सीन और छिपकली वाले दृश्य का ज़िक्र बेहद ज़रूरी है जो वाकई बेहद
उम्दा तरीके से फिल्माए गए हैं लेकिन मुझे सबसे ज्यादा दिक्कत फिल्म की रफ़्तार और
उसके क्लाइमेक्स से है। कम से कम पांच छः जगह ऐसी आती है जब आप सुस्त रफ़्तार से
बोर होकर आस पास देखने लगते है और क्लाइमेक्स में तो हद ही हो गयी। बी/सी ग्रेड की
हॉरर मूवी या टीवी सीरियल जैसा अंदाज़ के क्लाइमेक्स को न तो स्क्रिप्ट और न ही
स्क्रीन प्ले बचा पाया है- काश इसमें थोड़ी और मेहनत की गयी होती। इसके अलावा
फ़िल्म में कई सारे अनसुलझे सवाल हैं, जो समझ में नहीं आते मसलन
डायन इमरान हाशमी के ही पीछे क्यूँ पड़ी है, अगर कोई औरत डायन है तो
क्यों और कैसे बनी,
बार
बार जिक्र में आने वाले लिजा दत्त केस का कहानी से क्या लेना देना और ऐसे और भी कई
सवाल। यहाँ पर डायरेक्टर के अलावा और किसी को दोष नहीं दिया जा सकता।
आखिरी
बात- फिल्म ठीक ठाक बनी है,
बेहतर
बन सकती थी।
स्टार
कास्ट : इमरान हाश्मी,
कोंकणा
सेन शर्मा,
हम
कुरैशी,
कल्कि
निर्देशक-
कनन्न अय्यर
निर्माता
: विशाल भरद्वाज,
एकता
कपूर
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