Tuesday, July 2, 2013

जासूस ने उडाये होश

           अपनी बहुचर्चित फिल्म मिशन इम्पॉसिबल में टॉम क्रूज़ कहते है कि आज जासूसों की वो शान नहीं रही जो यूएसए और यूएसएसआर के कोल्ड वार के ज़माने में थी, कई बार देश को उसके अपने ही जासूस से खतरा लगता है। फिलहाल ऐसे ही एक जासूस ने अमेरिका के होश फाख्ता कर रखे है। इसका नाम है एडवर्ड स्नोडेन जो अमेरिका के पूर्व सीआईए एजेंट है। एनएसए के पूर्व कॉन्ट्रेक्टर के तौर पर काम कर रहे स्नोडेन ने अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जासूसी कार्यक्रम का भंडाफोड़ किया है। ऐसा करने के बाद वह अमेरिका से भाग गए और फिलहाल मॉस्को के हवाई अड्डे पर हैं। स्नोडेन ने भारत सहित दुनिया के तमाम मुल्कों से शरण मांगी है लेकिन अमेरिकी प्रशासन ने सभी देशों को स्पष्ट चेतावनी दी है कि स्नोडेन को शरण नहीं दी जाए, क्योंकि वह जासूसी तथा गोपनीय दस्तावेजों को लीक करने के आरोपों में अमेरिका में वांछित है। जाहिर तौर पर किसी भी देश से एडवर्ड स्नोडेन को कोई उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली। ताजा घटनाक्रम में स्नोडेन ने अपनी शरण का पहला औपचारिक आवेदन इक्वाडोर से किया है जिसमे उन्होंने आवेदन पत्र के साथ ऐसे दस्तावेजों को भी जोड़ा है जिसमे स्नोडेन ने उन्हें अमेरिका में होने वाले खतरों का जिक्र किया है।

                    हालाँकि दुनिया के सामने अपने उदार चेहरे को दिखाते हुए अमेरिका ने कहा है कि स्नोडेन के मामले की निष्पक्ष सुनवाई होगी और बतौर अमेरिकी नागरिक स्नोडेन अपने सभी अधिकारों को इस्तेमाल करने के अधिकारी होंगे लेकिन ये हर कोई समझ रहा है कि अमेरिका की वैश्विक स्तर पर रणनीति बनाने वाले कर्ताधर्ता इस वक़्त परेशान और डरे हुए है। इसे इस तरह समझ सकते है कि स्नोडेन ने शरण के लिए इक्वाडोर को किये गए आवेदनपत्र में लिखा है कि अमेरिका उन्हें अवैध तरीके से परेशान कर रहा है। स्नोडेन ने अपने आधिकारिक बयान में ओबामा के बारे में कहा है कि , “एक वैश्विक नेता को इस तरह की हरकत शोभा नहीं देती है. ये राजनीतिक दादागिरी के पुराने और घटिया हथकंडे हैं। उनका मकसद मुझे डराना नहीं हैं बल्कि मेरा साथ देने वालों को चेतावनी देना है। मैंने कोई अपराध नहीं किया है, इसके बावजूद उसने एकतरफा निर्णय लेते हुए मेरा पासपोर्ट रद्द कर दिया और मुझे ऐसा व्यक्ति बना दिया जिसका कोई देश नहीं है।'

                    अब सवाल ये है कि आखिर स्नोडेन ने ऐसा क्या किया है कि अंकल सैम की नींद हराम है।  दरअसल पिछले महीने खुफिया जानकारियो से भरे दस्तावेज़ लेकर स्नोडेन हांगकांग भाग निकले और ऐसा माना जा रहा है कि उनके लैपटॉप में अमेरिकी एनएसए द्वारा दुनियाभर में किये गए फोन कॉल्स और इंटरनेट कम्युनिकेशन पर नजर रखे जाने सम्बन्धी गोपनीय सूचनाएं है। स्नोडेन पर अमेरिकी जासूसी कानून का उल्लंघन करने का आरोप है। सवाल ये है की आखिर स्नोडन ने ऐसा किया क्यूँ ? स्नोडन के मुताबिक उन्होंने ये खुलासे अंतरात्मा की आवाज़ पर किये। स्नोडन के मुताबिक जिस तरह अमेरिका दुनिया भर के तमाम संचार साधनों के जरिये देशो और उनकी गतिविधियों पर नज़र रखता है वो पूरी तरह से अवैध और अनैतिक है लेकिन जानकार इसके पीछे सिर्फ अंतरात्मा की आवाज़ ही नहीं बल्कि ये भी मान रहे है की कहीं से कुछ चिंगारी स्नोडन को जरूर मिली है जिसके चलते इस 30 वर्षीय अधिकारी ने पहले समाचार पत्रों को खबर लीक की और फिर एक मुकम्मल इंटरव्यू के जरिये पूरी दुनिया को बता दिया कि अमेरिका दुनिया के 38 देशो पर नज़र रख रहा है। अभी तक प्राप्त सूचना के मुताबिक सीआईए ने जिन 38 टारगेट की जासूसी की उसमें से भारतीय दूतावास भी एक था और स्नोडेन के पास इन सारे आपरेशन्स की जानकारी है। 

                  पर ऐसा नहीं है कि स्नोडेन पूरी तरह से अकेले पड गए हों। स्नोडेन के पक्ष में खुफिया जानकारीयो को उजागर करने वाली वेबसाईट विकिलीक्स खुल कर आई है। विकिलीक्स स्नोडेन के लिए राजनयिक स्तर पर काम कर रही है मसलन एडवर्ड स्नोडेन ने रूस में भी शरण मांगी है और उनकी ओर से यह निवेदन ब्रिटेन की नागरिक सारह हैरिसन ने किया है जो विकिलीक्स की सदस्य और क़ानूनी सलाहकार है। हालांकि जानकार स्नोडेन के खुलासे के पीछे चीन का भी खेल देख रहे है।अमेरिका एक लम्बे वक़्त से चीन पर इंटेलिजेंस घुसपैठ का आरोप लगाता रहा है। ऐसे में माना जा रहा है की स्नोडेन की अंतरात्मा के पीछे ड्रैगन भी हो सकता है। वहीं रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन ने भी इशारे किये है कि अगर स्नोडेन और खुलासे करना बंद कर दे तो रूस उनके शरण सम्बन्धी आवेदन पर विचार कर सकता है। 

                जहाँ तक भारत का प्रश्न है मनमोहन सरकार स्नोडेन के मामले में पड़ने के मूड में बिलकुल नहीं है और न ही इसमें किसी भी किस्म का फायदा है। पिछले कुछ वर्षो में भारत और अमेरिका के सम्बन्ध एक नयी उंचाई पर पहुंचे है। न केवल वाणिज्य और व्यापार बल्कि रक्षा आपूर्ति, आईटी सेक्टर और सांस्कृतिक स्तर पर भी भारत और अमेरिका एक दुसरे के काफी करीब आये है ऐसे में नयी दिल्ली स्नोडेन को शरण देकर अमेरिका के साथ रिश्तो को दांव पर हरगिज़ लगाना नहीं चाहेगा। 



No comments:

Post a Comment